Tuesday, January 27, 2015

आधी बात

रात के दस बजने को है। जिस जगह फिलहाल हूँ वहां दस बजने का अर्थ लगभग वही है जो तुम्हारे शहर में आधी रात का है। यह आधी रात मुझे दो हिस्सों में बांट रही है। एक हिस्सा तमाम दुनियावी तनावों और चिंताओं को बारी बारी मेरे सामने पेश करता है। कुछ कड़वे यथार्थ से मुझे डराता भी है। डर के साथ वो मेरे कान में चेतावनी भरा सन्देश फूंकता है कि तुम्हारे पास वक्त बेहद कम बचा है सम्भल सकते हो तो सम्भल जाओ। जबकि एक हिस्सा मुझे थोड़ी शाबासी थोड़ी हिम्मत देता है। मेरी बेवजह की मुस्कान से उसे खुशी मिलती है यहां तक वो मेरी बैचेनियों पर भी हंस सकता है।
यूं हिस्सों में बंटा तुम्हारे बारें में सोचता हूँ और फिर सोचता ही चला जाता हूँ। किसी के बारें में सतत सोचना एक सामान्य बात हो सकती है परन्तु कोई जब जिंदगी में आदत की तरह शामिल हो जाता है तब थोड़ी फ़िक्र थोड़ी गुदगुदी का होना लाज़िमी है। रात के सन्नाटे ने मौन का इतना सिद्ध किस्म का माहौल बना दिया है कि अपने एक हाथ से मै धड़कनों के बालों में कंघी कर रहा हूँ। मेरी पलकें तुम्हारी स्मृति में अपनी गति में विलम्बित होती जाती है उन पर तुम्हारे अंतिम स्पर्श का बोझ आईस पाईस खेलता है। इस खेल में जब तुम जीत जाती हो मेरी आँखें थोड़ी नम होकर तुम्हारी खुशी में शामिल हो जाती है।
मैंने रच लिया है अपना एक एकांत और रात के दस बजे उस एकांत में केवल तुमको ही प्रवचन की भाषा में बात करने की इजाजत है। जब भी तुम्हारे अनुराग की चाशनी में डूबी मेरी ज़बान तुम देखती हो देखता हूँ तुम थोड़ा डर जाती हो तुम्हें मेरी फ़िक्र होने लगती है। हर हाल में तुम मुझे विजेता ही देखना चाहती हो और विजेता बनने के लिए कहीं रुकना अटकना बाधा बन सकती है। न जाने तुमनें यह अनुमान कैसे लगा लिया कि तुम मेरी कमजोरी बन सकती हो।जबकि सच तो यह है हाल फिलहाल तुम मेरी सबसे बड़ी ताकत हो।
सर्दी की इस रात में सोने से पूर्व तुम्हारी बातें याद करकें मै नींद को थोडा विलम्बित कर देना चाहता हूँ क्योंकि नींद की यात्रा चैतन्यता की नही है। नींद और ख़्वाब मन की अतृप्त कामनाओं के जंगल है और मेरे जीवन में तुम इतनी पवित्र किस्म की हो कि तुम्हें किसी वर्जित या अतृप्त कामना के हवाले से मै ख़्वाब में नही मिलना चाहता हूँ। स्वप्न मुक्त नींद के लिए सिद्ध साधना की आवश्यकता है और इस साधना के लिए तुम्हारी। बिना तुम्हारे मै मन की आसक्तियों से मुक्त नही हो सकता हूँ इसलिए मान लो थोड़ा सा मतलबी हो गया हूँ मैं।
कई सौ मील की भौगोलिक दुरी के बावजूद भी मेरी धड़कनें निकल पड़ती है तुम्हारी धड़कनों की टोह लेने। वो मेरे से इजाजत नही लेती है उन्होंने तुम्हारी धड़कनों से अपना एक आत्मीय रिश्ता विकसित कर लिया है। जब तुम थककर गहरी नींद में सो जाती हो मेरी धड़कनें तुम्हारी धड़कनों के कान में चुपचाप कुछ मेरे दिल का हाल कहती है फिर तुम्हारी धड़कनों की गति कभी उल्लास तो कभी डर से बढ़ जाती है। उस वक्त तुम सो रही होती हो शायद तुम्हें इस मेल मिलाप का पता नही चलता हो या फिर पता भी चलता हो मगर तुम मुझे बताती नही हो ताकि मै तुमसे थोड़ा तटस्थ थोड़ा विरक्त बना रहूँ।
पिछले एक घंटे से एक ही करवट पड़ा हूँ मेरा बिस्तर थोड़ा बैचेन हो गया है उसे भय है कहीं तुम्हारी यादों के सहारे मै समाधिस्थ न हो जाऊं फिर वो रात भर मेरे एकतरफा बोझ से दबा रहें। अभी अभी मेरी गर्दन पर तकिए ने तुम्हारा नाम की एक हल्की फूंक मारी तो मैंने करवट ली उसके बाद बिस्तर की सिलवटों को ठीक कर मैंने बिस्तर की आश्वस्ति भरी पीठ थपथपाई कि डरो मत ! मै हूँ ना।
दस बजकर दस मिनट हो गए है पिछले दस मिनट मेरी उम्र के अतिरिक्त दस मिनट है ये न उम्र में जुड़े है न घटे है मै इन दस मिनट का विस्तार तुम्हारे अंदर तलाश रहा हूँ ताकि हिस्सों में बंटी जिंदगी को जोड़कर कुछ देर जी सकूँ एक टुकड़ा जिंदगी तुम्हारे साथ। इसके बदलें तुम मुझे कमजोर,कमतर,मतलबी,पागल या दीवाना कुछ भी समझों तुम्हारी मर्जी।तुम्हारे बारें में कुछ चीजें ऐसी है मुझे उनके होने या न होने से कोई ख़ास फर्क नही पड़ता है। हो सके तो कुछ समझना नही बस जीना ये बेतरतीब पल यूं ही बेवजह।

'आधी रात-आधी बात'

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