Saturday, January 3, 2015

प्रवचन

योजनाओं के दबाव। नियोजन के तिकड़म। स्व का सम्पादन और बहुत प्रयास करके चीजों को अपने अह्म के मुताबिक़ करना मेरी दृष्टि में तथाकथित पुरुषार्थ की दासता का एक भाग है। सकल्पों का प्रकाशन या लोक के प्रश्नों से अभिप्रेरित हो संकल्पों का संचयन दिमाग को जरूर भर सकता है परन्तु अस्तित्व का अपना नियोजन इन सब पर मंद मंद मुस्कुराता है।
चाहतों का अधूरा रहना या फिर अधूरी चाहतों को मिला एक आयत बना उसमें खुद का अक्स चिपका देना आहत मन का एक उपचारिक प्रयास हो सकता है।
सतत् यात्रा में रहना स्वीकार भाव को नियति प्रारब्ध की छाती पर बैठा देना और उसकी आँखों से दुनिया देखना एक आप्त मार्ग हो सकता है।
सम्भावना एक ईकाई है जिसे अवसर समझ लेना एक मानवीय त्रुटि भी हो सकती है। विकल्प एक प्रयास है खुद को पुनर्सरचना की प्रक्रिया का हिस्सा बनाने का जिसमें अनुमान हर बार सही निकलेंगे इसकी प्रत्याभूति साक्षात ब्रह्म भी नही दे सकते है।
सारांश: कमजोर स्व को मजबूती देना ज्ञात उपचार है। मगर इतना भी ज्ञात नही है शायद यही वजह हैं कि पुरुषार्थ की शक्ल में प्रायः ईगो हमारा उपयोग करना शुरू कर देता है पुरुस्कार स्वरूप दुनिया कहती है ये आदमी बुद्धिमान है।

'इतवारी प्रवचन'

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