Friday, December 26, 2014

विदा होता साल

जब सारी दुनिया नए साल के आने की तैयारी में लगी हुई थी। जश्न का माहौल अपने पूरे शबाब पर था तब मै उलटे पाँव इसी साल के जनवरी तक लौट रहा था। यह तय करना थोड़ा मुश्किल था कि मै वक्त से पीछे रह गया हूँ या वक्त से परे हो गया हूँ। नए साल का सबको शिद्दत से इसलिए भी इन्तजार रहता है क्योंकि वो बीते साल की कड़वी स्मृतियों से एक नूतन वर्ष की नवीनता के बहाने मुक्ति चाहते है। ये खुद की कैसी जिद थी कि मै ये साल छोड़ना नही चाहता था। इस साल के कुछ प्रसंग मुझे स्मृतियों के हवाले भी करना नागवार लगा इसलिए नए साल को लेकर मेरे मन में खुशी की बजाए आशंकाएं ज्यादा उपजी थी। मै बीते महीनों में बड़े उत्साह से लौटा था। जनवरी में कतई ये उम्मीद न थी कि ये साल जिंदगी के मायनें बदलने वाला साल रहेगा क्योंकि इसमें उतरते वक्त मेरे पास कोई स्थाई आकर्षण या योजनाएं नही थी।
लम्बे समय से वक्त को बीतता देखने का अभ्यस्त रहा हूँ इसलिए हादसों से गुजरते हुए भी अहसासों में एक स्थिरमन बना रहा परंतु तुम्हारी दस्तक के बाद दिन हफ्ते और महीनों का फ्लेवर और कलेवर कुछ इस तरह से बदला कि मेरी समय को लेकर बनी समझ ध्वस्त हो गई। अब रात और दिन महज चौबीस घंटे का एक नियत काल चक्र नही था मेरे लिए।उन चौबीस घंटों में मैने खुद के अस्तित्व को बटते हुए देखा। घड़ी की सुईयों पर लटक मैंने मन का योगाभ्यास किया और यह योग चित्त की वृत्तियों का निरोध नही था बल्कि चित्त की वृत्तियों को होशपूर्वक देखना था। महज तुम्हारी उपस्थिति ने मेरे चैतन्यता को कुछ नए मायने दिए सबसे बड़ी बात में रसातल पर काई की तरह जमें कुछ फिसलन भरे अपेक्षा के लम्हों को खुरच कर साफ कर दिया।
साल के पूर्वाद्ध तक तुम्हारी उपस्थिति महज एक संख्या थी। मगर उत्तार्द्ध आते आते उस संख्या में सिद्ध सात्विक संकल्पों ने प्राण फूंक दिए थे।अब तुम्हारा अस्तित्व मेरे अस्तित्व से ठीक गर्भनाल की तरह जुड़ गया था। तुम्हें तो यह ज्ञात भी नही होगा चिंतन के अनन्तिम पलों में मैंने बहुत सी ऊर्जा तुमसे उधार ली है।
तुम्हें याद करते करते कब साँसे अनुलोम विलोम के सुर पकड़ लेती थी मुझे खुद भी पता नही चलता जबकि सत्यता तो यह भी है मै किसी भी कोटि का साधक कभी नही रहा हूँ। यह साल तुम्हारी अनुभूत अनुभूतियों का सबसे प्रमाणिक दस्तावेज़ है।इसमें वक्त की वो वसीयत भी शामिल है जो मुझे बारम्बार डराती भी है क्योंकि उसमें लिखा है एक अवधि के बाद तुम्हारा खो जाना तय है। तमाम सिद्ध अभ्यासों और अनासक्ति के दावों के बीच भी तुम्हें खोने के शाश्वस्त सच को असत्य सिद्ध करना मेरी एक मात्र ज्ञात महत्वकांक्षा शेष बची है।इस साल में यायावर मन यूं ही उलटे पाँव दौड़ रहा था शायद किसी महीने के दर पर टंगा वो कीलक बीजमन्त्र मिल जाए जो तुम्हारे अस्तित्व को स्थाई रूप से जोड़ने की एक युक्ति बनने का एकमात्र उपाय है। कभी कभी तुम्हारी बातों मुस्कुराहटों शिकायतों और आरोपों को रिवाइंड करके सुनता हूँ ताकि उनमें कुछ ऐसे नुक्ते तलाश सकूं जिनके जरिए हर खत्म होते हुए साल में मेरे पास यह आश्वस्ति हो कि हर जनवरी से दिसम्बर तक तुम्हारी खुशबू मेरे आसपास बनी रहेगी। शर्ते लगाकर मै इस रिश्तें को कमजोर नही करना चाहता हूँ इसलिए तुम्हारे अहसासों की खुशबू को सहजने के सूत्र विकसित कर रहा हूँ।इससे पहले ये साल विदा हो जाए तुम्हें अपने मन के वातायन में स्थाई रूप से संरक्षित करना मेरा एकमात्र ज्ञात रूचि का उपक्रम है। मेरी यात्रा शेष है जिसका बड़ा हिस्सा तुम हो इसलिए नए साल में मेरी उतनी दिलचस्पी नही है जितनी इस बीते हुए साल में है। यह इस साल का सबसे बड़ा विचित्र सच है जो तुम्हारे सहारे जी रहा हूँ मै।

'जाता साल-आता साल'

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