Saturday, December 6, 2014

उनकी बातें

उन दोनों की उम्र में तकरीबन एक दशक का फांसला था। सृष्टि क्रम में दोनों आगे पीछे आएं मगर मिलने के बाद दोनों ऐसे साथ-साथ चलनें लगे थे कि उम्र धीरे धीरे गल कर बह गई थी। वक्त गुजरनें और साल बीतनें से उम्र का कोई सम्बन्ध नही होता है ये बात उन दोनों को देखकर साफ़ पता चलती थी। वे दोनों ही अपने समय से आगे की जिन्दगियां जी रहें थे। शुरुवाती दिनों में आयु के पूर्वाग्रह दोनों का पीछा करते थे। धीरे धीरे उम्र की जगह सम्वेदना और चेतना ने ली और प्रज्ञा एक दुसरे के जीवन में होनें का उत्सव मनानें लगी थी। उनका मिलना अस्तित्व के विचित्र संयोगों की जुगलबंदी का परिणाम था बुनियादी तौर पर बहुत से मुद्दों पर असहमत होते हुए भी वें प्रायः एक दुसरे से सहमत पाये जाते थे।
रोजमर्रा की भागदौड़ के बीच वें चुरा लेते थे कुछ पल और निकल पड़ते थे अज्ञात की यात्रा पर उनके विषय भले ही बेहद भटकें हुए होते मगर एक दुसरे का हाथ थामें उनकी यात्रा एक ही दिशा में आगे बढ़ती थी। चेतन की बजाए एक दुसरे के अर्द्धचेतन और अवचेतन की अमूर्त अभिलाषाओं के बड़े स्रोत बन गए थे वें दोनों।शायद यही वजह है कि यदा कदा दोनों की मुलाक़ात ख़्वाबों में भी होने लगी थी।
दरअसल उनके गुरुत्वाकर्षण का एक ही केंद्र बन गया था वो आँखों में आँखे डाल घंटो बातें कर सकते थे। उनकी पारस्परिक पारदर्शिता इतनी साफ़ किस्म की थी कि उनमें मन की तृप्त कामनाओं के स्पष्ट छायाचित्र देखे जा सकते थे।
उन्हें देखकर कभी ऐसा नही लगा कि वो अपने मन की आंतरिक रिक्तताओं का निर्वासन झेल रहें है उनके सांसारिक पक्ष बेहद संतुष्ट और व्यवस्थित किस्म थें परंतु वो किस अज्ञात वजह से एक दूसरे के नजदीक आएं ये बता पाना मुश्किल था। उन दोनों की भौतिक उम्र में भले ही एक दशकीय अंतर था परंतु दोनों के मन चेतना और सम्वेदना की आयु लगभग समान थी दोनों ही एक दुसरे के प्रश्नचिन्हों को पूर्ण विराम में बदलनें की क्षमता रखते थें।
उन दोनों ने रच ली थी अपनी एक समानांतर दुनिया जहां हवा बारिश आकाश सब कुछ उनका अपना था वो पढ़ सकते थे एक दुसरे की पीठ पर छपें सांसारिक विवशताओं के इश्तेहार इसलिए धीरे धीरे उनकी आरम्भिक शिकायतों की जगह एक मौन समझ ने ले ली थी। अब उन दोनों के लिए सम्वाद से ज्यादा अंतरनाद के एक दुसरे को महसूस करना अधिक महत्वपूर्ण हो गया था।
देखा जाए तो वो दोनों न प्रेमी थे और न मित्र ही।उनके रिश्तें को समझने के लिए एक नई परिभाषा का निर्माण करना अनिवार्य था मगर उन दोनों की भावनात्मक लोच को आत्मसात करने के लिए दृष्टि की व्यापकता का होना एक अनिवार्य शर्त थी।
साल में एक बार उदासियों और विदाई के टीले पर दोनों मिलते थे तब वो अपने अन्तस् में छिपे उस अज्ञात को महसूस कर सकते थे खुलकर दोनों की रूह जब आपस में जुड़ जाती तो फिर देह विलोपित हो जाता था। उनके स्पर्शों में पवित्र भावनाओं की पवित्रता होती धड़कनो का मद्धम स्पंदन मिलकर ऐसा सुरो को साधता कि मौन में साँसों के आलाप उस दिव्य संगीत की मदद से रियाज़ करने लगते थे।
उनकी एक ही योजना थी कि उनकी कोई योजना न हो वो बिना शर्त कुछ लम्हों को जीना चाहते उनकी चाहतों का आकाश थोडा अजीब था वहां धुंध में भी उड़ान भरनें की हिम्मत थी और बारिशों में साथ भीगने की शरारत भी। वो दोनों गढ़ रहे थे देह से इतर सम्बन्धों के नए आख्यान जिन पर सुनकर यकीन करना थोड़ा मुश्किल था। पंचमहाभूत को जानते हुए देह को फूंक से उड़ा उन दोनों ने मन के हाथ मिला लिए थे आपस में।उनको देख दिल से कभी दुआ निकलती तो कभी रश्क भी होता था। उनकी बातें फिलहाल भले ही काल्पनिक या गल्प लगे मगर उन दोनों का सच रोमांचित और विस्मय से भरा हुआ था जिसे सोचते हुए कोई भी नींद में मुस्कुरा सकता था।

'उनकी बातें वो ही जानें'

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