Thursday, December 4, 2014

सम्मोहन

आखिर तुम्हारा सम्मोहन टूट ही गया। शब्दों के रचे व्यूह की अपनी एक सीमाएं थी। उनमें स्पंदन जरूर था मगर उनमें कीलित मंत्रो के जैसे प्रभाव शामिल थे। इस सम्मोहन के जरिए मै तुम्हारे अर्द्धचेतन और अवचेतन में संचित दमित कामनाओं की पड़ताल में सलंग्न ही था कि तुमने चेतन हो आँखे खोल दी अपनी। तुम्हारा सम्मोहन टूटना है यह तो पहले दिन से ही तय था मगर इतनी जल्दी टूट जाएगा इसकी उम्मीद मुझे भी न थी।
मै कोई आदर्श पुरुष नही था तुम्हारे जीवन में।तुम्हें मेरे जरिए खुद की तलाश पूरी होने की एक धूमिल सी सम्भावना दिखी थी। इसी बहाने तुम चली आई बिरहन सी मगर मेरे वैविध्य ने तुम्हें हमेशा एक संशय में रखा। तुम्हारी धारणाएं तुम्हें अनासक्ति के लिए सतत प्रेरित करती रही परंतु कुछ अंश वास्तव में मेरे भी ऐसे अद्वितीय किस्म के थे जिसके चलते तुम अपनी विचारधारा से बेईमानी तक करने की सोचने लगती थी।
इस यात्रा में चयन के सारे सर्वाधिकार तुमनें अपने पास सुरक्षित रखें।मै केवल दृष्टा था।अच्छी बात यह थी कि मै स्वीकार भाव में था। ना मेरे ऐसे कोई लौकिक आग्रह ही थे जिसके चलते तुम्हें संपादित करने की मेरी कोई चाह रहती। मेरे हिस्से का केवल इतना सच है कि हां! मुझे तुम्हारा साथ अच्छा लगने लगा था। जब तुम साथ होती तो मेरे कन्धों और पलकों पर वक्त और हालात की जमी गर्द उड़ जाती थी तुम्हें लेकर मेरे मन में एक पवित्र आश्वस्ति थी इसलिए तुम्हारे समक्ष छवि निर्माण की ऊर्जा अपव्यय से बच जाता था। जब-जब तुमसें मिला बेपरवाह और बिना लाग लपेट के मिला।
तुम्हारे सम्मोहन का टूटना मेरे लिए आश्चर्यजनक कतई नही है क्योंकि मुझे लेकर तुम्हारे मन में प्राप्य और अप्राप्यता के द्वन्द थे और शायद कुछ नैतिक प्रश्न भी तुम्हें सतत परेशान कर रहें थे। इस अवस्था में समझाईश से बचता रहा हूँ मैं क्योंकि समझाना भी अन्य को एक किस्म की अपने अनुरूप करने की कंडीशिनिंग है।इसलिए मैंने तुम्हारे कुछ प्रश्नों पर कोई प्रत्युत्तर नही दिए। मै चाहता था इस यात्रा में यदि तुम्हारी वास्तविक दिलचस्पी है तो इसके लिए समस्त आवश्यक तैयारियां तुम्हारे नितांत की व्यक्तिगत अभ्यास से विकसित होनी चाहिए। मेरे स्पष्टीकरण तुम्हें कमजोर बना सकते थे तुम्हें शब्द विलास में खो कर निर्णय ले सकती थी और उसके बाद यदि संयोग से कभी तुम्हें अपराधबोध होने लगता तो इस यात्रा के लिए तुम्हें उत्प्रेरित करने का सीधे सीधे मै अपराधी बन जाता।
सम्मोहन से बाहर आते ही तुम थोड़ी असहज थी शायद तुम्हें यह अहसास तो था कि तुम क्या खोने जा रही हो। तुम्हारा दिमाग तुम्हें हौसला देता तो दिल लानत मलानत भेजता। कुछ अर्थों में देखा जाए तो यह सम्मोहन टूटना बेहतर रहा क्योंकि अब सब ज्ञात और चैतन्य है। इस सम्मोहन के उत्तर प्रभाव में तुम थोड़ी देर एक स्थान पर जड़ खड़ी रही और मै तुम्हें देखता रहा अपलक। बस मुझे दुःख इस बात का है कि मेरे इस शाब्दिक सम्मोहन के उत्तर प्रभाव लम्बें वक्त तक तुम्हारा पीछा करेंगे भले ही तुम अपनी बुद्धि से मेरी यादों के कमरें पर युक्ति की सांकल लगा दो हमेशा के लिए। यह सम्मोहन पेशेवर या उपचारिक सम्मोहन से इसलिए भी भिन्न रहेगा यह तुम्हारी स्मृतियों से मुझसे जुड़े अनुभव विस्मृत नही कर सकेगा बल्कि इस सम्मोहन का एक अपना विचित्र अनुभव तुम्हारे अनुभव का हिस्सा बन गया है। जिसे सोचकर तुम कभी हंसा करोगी और कभी रोया करोगी।
यह सम्मोहन न तिलिस्म से भरा था और न यह ऐन्द्रियजालिक था।यह सम्वेदना और चेतना के सहज आकर्षण की ऊपज था इसमें अर्जित व्यवहार एक बाधा बना और ये टूट गया।परन्तु निसन्देह इसके जरिए हम एक दूसरे के अज्ञात से परिचित भी हो पाएं यह देह से अधिक चेतना के आत्मिक संवाद का माध्यम भी बना। यह इस छोटी यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि है।तुम्हें देखकर मै थोड़ा विस्मित जरूर हूँ परन्तु मै तुम्हारी अद्वितियता का एक अंश अपने हृदय में हमेशा के लिए सुरक्षित कर लिया है और उसके सम्मोहन में कम से कम मै सारी उम्र रह सकता हूँ। शेष जीवन के लिए मेरे पास तुम्हें देने को केवल कुछ शुष्क शुभकामनाएं ही है यदि उनमे कुछ भी असर हो तो यही कहूँगा जहां भी रहो खुश रहो।

'जीवन का सम्मोहन'

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