Monday, December 8, 2014

ब्याज

तुमसे मिलनें के बाद मै थोड़ी देर के लिए मतलबी हो गया था। तुम्हारें अंदर खुद को तलाशने लगा था शायद तुम्हारे साथ के अहसास ने मुझे थोड़ी देर के लिए बदल दिया था मै अन्तस् की ख़ुशी को खींचकर लम्बी कर देना चाहता था तुम्हारी वजह से न जाने क्यों ऐसे लगा कि मै खुशी को महसूस कर सकता हूँ खुश दिख सकता हूँ।
कई दिनों तक उसी अहसास में फंसा रहा सच्चाई से कहूँ तो दोस्त मैं तुम पर अटक गया था मुझे तुम्हारे माथे पर खुशी का लिफाफा नजर आने लगा था।
बहरहाल खुशी कब देर तलक किसी के हिस्सें में रहती है। मैं अब खुद के मूल वजूद की तरफ लौट आया हूँ अब मेरी पलकों पर ज़मी यादों की धुंध छट गई है थोड़ी देर वो गीली रहीं और फिर सूख गई।
अब मुझे कोई दुविधा नही है अब फिर से वही वैचारिकी और सम्वेदना की चासनी में डूबा अस्तित्व मेरा सच है।
इसी सच के सहारे खुद को साधना अब मेरी विवशता और प्राथमिकता दोनों है। तुम्हारी परछाई को नापते हुए मुझे तुम्हारे न होने का पक्का यकीन हो गया है।
तुम्हारी सुखद स्मृतियाँ मेरे लिए एक स्थाई पूंजी है जिनका ब्याज मै सावधि जमा की तरह ताउम्र खाता रहूंगा।

'मिसिंग कैपिटल'

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