Friday, December 12, 2014

चाय और तुम

एक तुम्हारे जाने के बाद चाय की प्याली ऐसी रूठ गई कि उसे मना कर हाथ में थामने की हिम्मत भी जाती रही। अब चाहे चाय हो या शराब मै कांच के गिलास में पीता हूँ।
चाय के कप की नजाकत और नाजुकता तुम्हारे स्पर्शों की देन थी। चीनी मिट्टी में खुशबू फूंकने का तुम्हारा इल्म काबिल ए तारीफ़ था कप को सूंघ कर तुम्हारी कोल्ड क्रीम का ब्रांड बता सकता था। चाय छानते वक्त तुम्हारा कंगन चाय के कप से टकराता तो लगता जैसे संतूर का तार बज उठा हो।
दरअसल चाय एक जरिया थी हमारे तुम्हारे बीच बिखरे अफसानों की किस्सागोई करने की।गर्म चाय में फूंक मारकर पीने की बचपन की आदत मै तुम्हारी सोहबत में ही छोड़ पाया। तुम्हारे लिए चाय बनाना पानी दूध चीनी पत्ती अदरख को पकाना भर नही था बल्कि सच कहूँ तो तुम्हें चाय कोई खास पसन्द भी नही थी मगर तुम पकती हुई चाय में जब फूंक मारकर उबाल हटाती तब मुझे तुम्हारी तन्मयता और मासूमियत में जादुई तिलिस्म नजर आता था। तुम चाय से उड़ती भांप के हवाले अपनी तमाम दुनियावी चिंताएं कर देती और फिर घूँट घूँट जिंदगी की तरह चाय पीती थी।
ऐसा कई दफे हुआ तुम्हारा न चाय बनाने का मन था और न पीने का मगर मेरे बोझिल मूड को देखकर तुम्हें शब्दों के सांत्वना भरे उपचार से बेहतर मेरे लिए एक कप चाय बनाना लगा। तुम्हारी रसाई में चाय के प्यालें हमारी बतकही के मुरीद थे और तुम्हारा कॉफी का मग इस बात पर तुमसे मुद्दत से नाराज़ रहा कि तुमनें उसको चाय का मग बना दिया था। जिस दिन तुम्हारे चाय पूछनें पर मै चाय पीने से मना कर देता तुम उस दिन गहरी फ़िक्र में डूब जाती थी कई दफा ऐसा भी हुआ मै आया और तुम बिन पूछे ही चाय बना लाई हम दोनों के बीच चाय एक तरल पेय ही नही थी बल्कि वो एक सेतु थी जिस पर हम एक दुसरे का बेफिक्री में हाथ थामें टहल सकते थे।
अक्सर शाम को तुम्हें चाय की प्यालियों के साथ तलाशता हूँ अब न वैसी चाय मिल पाती है और ना वो बातें जब तुम्हारे तानों से उपजी हंसी से चाय कप से बाहर छलक जाया करती थी। मेरे कुछ खादी के कुर्तों पर उनके निशान अब तलक बनें हुए है और मै चाहता हूँ वो ऐसे ही बने भी रहें वो हमारी मुलाकातों के सच्चे गवाह है।
ऐसा नही है कि अब चाय पीनी छोड़ दी है बस अब उसकी लत नही रही न उसमें मेरी वैसी दिलचस्पी रही जैसी तुम्हारे साथ पीते वक्त हुआ करती थी। तुम्हारे जाने के बाद मैंने कई दफे खुद चाय बनाई मगर अजीब इत्तेफाक है तुम्हें ये हुनर सीखा कर मैं खुद भूल गया हूँ अब डॉक्टरी सलाह मानकर ग्रीन टी पीता हूँ कहते है उसमें एंटी ऑक्सिडेंट होता है विज्ञान का यह कोरा झूठ है दरअसल एंटी ऑक्सिडेंट तो तुम्हारे हाथ से बनी चाय में ही होता था जिसे पी कर मेरा मन बूढ़ा होने से इनकार कर देता था।
अब न घर पर बॉन चाइना के कप है और न केतली अब कांच के गिलास का एक बचा हुआ सेट है जिसमें से हर छटे छमाही एक गिलास टूट जाता है फिलहाल दो बचें हुए है। कांच के गिलास इसे अपनी तौहीन समझते है कि सुबह जिस गिलास में मै चाय पीता हूँ शाम को उसी में शराब भी पी लेता हूँ वो मेरी फितरत नही समझ पा रहें है कि मै एक शराबी हूँ या चायप्रेमी। वो ही क्या तुम्हारे जाने के बाद मै खुद इस बात को लेकर कन्फ्यूज्ड रहता हूँ कि चाय सुबह पी जाएं कि शाम और शराब शाम पी जाएं कि सुबह।

'चाय और तुम्हारी चुस्कियां'

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