Wednesday, December 17, 2014

यकीं का मर जाना

तुम्हारा जाना तय था मगर इस तरह तुम जाओगी ये कल्पनातीत था मेरे लिए। तुमसें मिलनें के बाद एक ही अभिलाषा थी कि ये रिश्ता सबक का नही सफर का सबब बनें।मगर अफ़सोस मै गलत था। तुमने ऐसा सबक दिया कि मन की निष्पापता खुरच खुरच कर दिल से निकल गई है। अच्छा दिखने से कई गुना बुरा है अच्छा होना। मुझे लगा तुमने उस बची खुची अच्छाई को देख मुझ पर अधिकार समझा था मगर अंतोतगत्वा तुम्हारे मन की उधेड़बुन ने तुम्हें इस कदर कटघरे में खड़ा किया कि तुमनें खुद मुंसिफ बन मुझे मुजरिम करार दे दिया। एक बार बिखरकर इकट्ठा होने में मुद्दतें गुजर जाती है तुमसें मिलनें से पहले शायद मेरी दुनिया अलग थी मगर जिस सबक के साथ तुमनें मुझे छोड़ा है वो ठीक वैसा जैसे कोई मुसाफिर आधी रात बस से गलत ठिकाने पर उतर जाएं और राह में खड़ा सोचे उसे आगे चलने चाहिए की पीछे।
मौटे तौर अलहदा सोचना और अलग जीना ये दो अलग बातें है गैर पारम्परिक सोच को जीने के अपने खतरें हमेशा से रहें है मगर दुःख इस बात का है कि इस सोच को जीने के एककदम पर तुम इतनी आशंकाओं उचित अनुचित,पाप-पुण्य के मुकदमें में घिर गई हो कि तुम्हें मेरी दलीलें महज एक उकसावा भर लगने लगी। मैंने कभी तुम्हें न उकसाया है और न शब्दों के व्यूह में निस्तेज किया है।मेरी भूमिका एक सचेतक भर की थी क्योंकि तुम्हारे अंदर खुद की शर्तों पर जीने की सम्भावना दिखी थी। तुम्हारे जीवन में मैं दोस्त या प्रेमी की हैसियत से नही शामिल था बल्कि मै तुम्हारा एक सच्चा और अच्छा श्रोता भर था हाँ तुम्हारा साथ निसन्देह मुझे अच्छा लगता था।
अब जब तुमनें फरमान सुना ही दिया है कि मेरा दिखना भर भी तुम्हारी मानसिक अशांति का सबब है मेरे चेहरें पर तुम्हें मासूमियत की जगह नियोजित चालाक षडयन्त्र की बू आती है तो ऐसे में मेरा यहाँ ठहरना पहाड़ सा भारी हो गया है।
और अंत में यही कहूँगा हो सके तो आत्मदोष से बचना यदि मेरे मत्थे सब कुछ मढ़कर भी तुम्हें राहत मिलती हो तो भी मै इसके लिए प्रस्तुत हूँ एक खूबसूरत रिश्तें की हत्या का इल्जाम मेरे सिर और सही क्योंकि मै तो प्रकारन्तर से ही अन्यथा लिए जाने के लिए शापित हूँ।
मेरे कदम भले ही इस बोझ से धँसते चले जाएं मै तुम्हें ऊपर उठते हुए देखना चाहता हूँ। साथ बिताए चन्द लम्हों की जमानत लेकर जा रहा हूँ सफर में दवा की माफिक काम आएँगे तुम इन्ही लम्हों को जला इस सर्दी में राख के हवाले कर दो और आगे बढ़ो मेरे जैसे कुत्सित लोगो से तुम्हारी सुरक्षित दूरी ही भली है।क्योंकि मेरी वजह से तुम्हारे उसूल खतरें में पड़ गए इसलिए फिलहाल तो दफा करो मुझे और खुद के मजबूत होने का प्रमाण पत्र अपनी मन की दीवार पर चिपका लो। मेरे पास अंतिम सलाह यही है जिस पर तुम्हें यकीन हो जाएगा इसका मुझे यकीन है।

'मौत एक यक़ीन की'

1 comment:

  1. क्या ऐसे रिश्ते संभव हैं? हम सब किसी न किसी नेम टैग की सुविधा ढूंढते रहते हैं... बहुत अच्छा लिखा.. हमेशा की तरह.

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