Friday, December 26, 2014

कतरा कतरा

मध्यांतर तक दोनो के हिस्से में कुछ मुलाकाते ही थी। सुखद स्मृति को सहेजना थोडा मुश्किल काम होता है क्योंकि धीरे धीरे रोजमर्रा का अवसाद उनको घुण की तरह चाटना शुरु कर देता है और हम अक्सर उन बातों को ज्यादा याद रखने लगते है जो हमें तकलीफ देती है। उसके साथ बिताई कुछ छोटी छोटी से किस्त सदियों का अफसाना बन गई थी। वो चंद मुलाकाते ही नही थी बल्कि उनकी यादों में साक्षात सम्बंधो का एक ब्रहमांड सांस लेता था। उनमें सुख की घडियां थी मन्दिर की तरह उलटे पांव लौटते प्रार्थनों मे बंधे हाथ थे। अलग अलग किस्म के विस्मय थे जिनके कोई लौकिक जवाब उन दोनो के पास नही थे कतरा-कतरा रिसते कुछ दुख के पतनाले भी थे जो अन्दर बाहर हो रही बरसात के सच्चे गवाह थे।

उसको याद करने के लिए जब से वजह की जरुरत खत्म हुई तब से लगा कि अब रिश्तों का न केवल भूगोल बदला है बल्कि मनोविज्ञान भी अब करवट लेने लगा है। बहुत दिनों तक खुद को कभी सही तो कभी गलत कभी रिक्त तो कभी तृप्त महसूस किया। दरअसल उन दोनों के रिश्तें न लौकिक थे और न अलौकिक ही उनमें राग जरुर था मगर वो राग किसी किस्म का बंधन नही बांधता था बल्कि वो आजाद उडान भरने का हौसला देता था।

उनकी लडाईयां कभी दोतरफा हो जाती तो कभी एकतरफा खुद ही से चलती थी। मगर आश्चर्यजनक रुप से दोनो के मन मे कोई द्वन्द भी नही था। कभी उनके अहसास सर्दी की एक कोहरे की सुबह ही तरह धुंधले हो जाते तो कभी तेज धूप की तरह रोशनी और ताप से दोनों को चमकाते भी थे। पहली दफा ऐसा महसूस हुआ था कि दिल और दिमाग के विद्रोह मे दिल की धडकनों ने आपस मे गहरी दोस्ती कर ली थी आते जाते सांस एक दूसरे को किसी गुप्त मंत्र की तरह संकेत मे बताकर जाते थे कि मन की गिरह कैसे बंध-खुल रही है।

अक्सर दोनो खुद से बेखबर रहते है मगर एक दूसरे की खबर चुपचाप दोनो तक पहूंच जाती थी सारा अस्तित्व दोनों के लिए कुछ औपचारिक षडयंत्र करता था ताकि उनकी कनफुसिया सुनकर वो दोनो के जीवन मे कुछ राहत के पल बो सके। दोनो के मन की खुशबू से हवा मे नमी का एक खास स्तर बना रहता वो हवा धूप् बारिश सूरज चांद सितारों के जरिए एक दूसर के जीवन मे संकेतों के रुप मे टांक दिए गए थे इसलिए बेखबरी के दौर में दोनो को एक दूसरे की ठीक ठीक खबर रहती थी।

इस सर्दी में दोनो के लिहाफ देह की सात्विक अनुभूतियों के यज्ञ से ताप पा रहे थे बिस्तर पर मन की समिधाओं के षटकोण सम्वेदनाओं की अग्नि में अपनत्व के घी से एक स्वयं सिद्ध जाप करते थे जिसमें दोनों का अह्म भी धुआं बन उड रहा था इन सब की वजह से दोनो की नींद मे भी दिव्य चैतन्यता थी इसलिए उनकी होश असंदिग्ध थी।

दरअसल उन दोनो का मिलना सदी का बडा विचित्र संयोग था और इस संयोग में किसका हाथ था ये जानने के लिए दोनो अपने अपने मन का पंचांग लगभग एक बार जरुर बांचते थे। मगर ग्रह नक्षत्रों की युक्तियों से इसका कोई पता न चलता था अंत मे दोनों हार अपने अपने हिस्से का अनिय्ंत्रित जीवन छोड देते बहने के लिए ताकि अपनी लय और गति मे एक एक कतरा नदी बनें और अंत मे समन्दर मे विलीन हो जाए। दोनो का मिलना दो पदार्थो का मिलना नही था बल्कि उनका मिलना दो चेतनाओं का सत्संग था जो एक अज्ञात की खोज में किसी निर्जन टीले पर बैठ एक दूसरे की उपस्थिति की जी रही थी बस। इस मुलाकातों के कारणों की तरह इनकी समय सीमा और आवृत्तियां भी अज्ञात थी। सम्बंधो के रहस्यवाद में यह एक नए अध्याय या नए युग का सुत्रपात था जिसका माध्यम वो दोनो बने थे।


‘कतरा-कतरा जीवन’

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