Sunday, September 14, 2014

ख्वाब आवारा

हमने कुछ सांझा ख़्वाब देखे थे ये खुली आँख के  ख़्वाब नही थे कम से कम। इन ख्वाबों में वादों की सच्चाईयां भले ही न रही हो मगर जज्बातों की गहराईयां जरुर शामिल थी। ये कुछ ऐसे सांझा ख़्वाब थे जो हमने-तुमने आधे-आधे बुने थे और शायद ये आज तक इसलिए अधूरे रहे गए है। तुम्हारी पलकों की चमक आज तक उतनी ही गहरी है भले ही इनदिनों काजल बदरंग पड़ गया है। एक अरसा हो गए मुझे कोई ख़्वाब आए एक दौर वो भी था जब जून की दोपहर में एक थकन भरी नींद में भी तुमसे ख्वाबों की उस मुंडेर पर बतकही हो जाया करती थी जहां इन दिनों परिंदों ने भी आना छोड़ दिया है।
पिछली सर्दी में तुम्हें सोचता रहा डेढ़ बजे तक।उम्मीद थी कि बाकि बची बातें ख्वाबों में होगी मगर हैरत की बात  उस रात मुझे गहरी नींद आई सुबह एक मलाल भी था तुमसे न मिल पाने का मगर उस दिन के बाद  उतनी गहरी नींद कल तक नही आई आज शायद आ जाए क्योंकि जब तुम्हारे बारें में सोचता हूँ तो नही याद आती मुझे जमाने की बेरुखियाँ खुद की नाकामी के किस्से।यादों की कश्ती पर तुम्हारी वादों बातों की पतवार ले निकल पड़ता हूँ उस घने जंगल में जहां हमनें ख्वाबो में नदी के किनारे चलते चलते हंसी के बीज बोए थे वो अब घने दरख्त बन गए होंगे मगर अब वो भी हमारी तरह  बेहद उदास दिखते होंगे शायद...उन रास्तों पर तुम्हारे निशाँ अब भी बचे होंगे क्योंकि अब मन के उन वीरान रास्तों से कोई गुजरा नही है अरसे से।
हमारे सांझा ख्वाब कुछ दिन तक उस गुलमोहर की टहनी पर टंगे थे जिसे नीचे बैठ हम सुस्ताएं थे दो-दो लम्हा...!
ख़्वाब देखना जरूरी लगता है, कभी कभी ख्वाबों में जीना जितना मुश्किल है उतना ही आसान है ख्वाबों की आस में जीना साल में एक दफा  तुम्हें,तुम्हारी बातों को बड़ी शिद्दत से याद करता हूँ ताकि तुमसे ख्वाबों में मिलकर कुछ अधूरे सवाल हल कर सकूं जमा-नफ़ी गुणा भाग के नुक्ते सीख सकूं तुम्हें देख सकूं बेफिक्र और सूफी मेरे इतने मतलब शायद तुम्हें रोकते है ख्वाबों में आने से या फिर एक इतवार भी मेरे हिस्से नही आता है तीन सौ पैसठ दिन में...!
तुम्हारी यादें गहरी नींद की सांत्वना भेज देती है जिसके सहारे तुम्हें याद करता हूँ साल भर मगर तुमसे ख्वाबों में मिलें तो अरसा हो गया है तुम्हारे ख्वाब मुझसे अलहदा है जानता हूँ इसलिए कभी नही जाता तुम्हारी पलकों तक लौट आता हूँ हर बार तुम्हारे दर से चुपचाप बस इसी उम्मीद पर कि कभी ख्वाबों में तुमसे जरुर मिलना होगा यह भी ख्वाब का छोटा ख़्वाब है जिसे छोड़ आया हूँ इस बार तुम्हारे सिरहाने....!

'ख़्वाब कुछ आवारा'

© अजीत 

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