Monday, September 1, 2014

गणित

तुम्हारे मन की बातें सुनने के लिए अक्सर समाधिस्थ होना पड़ता है मन का अजीब खेल है यह वो सब सुन लेता है जो यह सुनना चाहता है इसलिए कई ऐसे बातें इसने ऐसी सुन ली है जो तुममे कभी कही ही नही अब उन बातों की तूलिका से ये रोज रात को एक स्याह चित्र बनता है सुबह देखता हूँ तो कई रंग मिलकर इंद्रधनुष के समानांतर आकृति विकसित कर रहें होते है खुद ब खुद।
तेरे मेरे दरम्यां कुछ अनकहे से किस्से है कुछ बोझिल रातें है जिनकी गवाही ले मै तुम्हारी आँखों में सुरमा लगाना चाहता हूँ तुम्हारी रोशनी मेरे लिए इसलिए भी ज्यादा जरूरी है क्योंकि तुम बहुत नजदीक का नही देख पाती हो।ख्यालों की अंगडाई से पड़ी तुम्हारे बिस्तर की सिलवटें गिनता हूँ उनमे कुछ बहुत गहरी है तुम्हारे जिद के जैसी।
इन दिन फिर से तुम्हें सोचता रहता हूँ  अपनी तमाम बुराइयों के बावजूद तुम्हें सोचने के मामलें कितना ईमानदार हूँ यह बात मुझे भी हैरत में डाल देती है
तुम इनदिनों मेरे बारें लगभग नही सोचती हो यह ख्याल हिचकी की गैरहाजरी में आता है। तुम्हारा साथ मुझे उन विश्वासों की तरफ ले जाता है जिनमें मेरा कभी विश्वास नही रहा है मगर तुम्हें सोचते हुए मै कभी प्रार्थना करता हूँ तो कभी संदेह से आसमान ताकने लगता हूँ।
सुनो ! कुछ दिनों के लिए तुमसे नाराज हो रहा हूँ  तुम्हारी बिना किसी गलती के यह एक तरीका है तुम्हारी यादों के चलचित्रों को धीमी गति से देखने का तुम इन दिनों में गणित पढ़ो शायद लघु दीर्घ समीकरणों को सिद्ध करने का कोई प्रमेय तुम सीख सको फिलहाल हमारें परिचय में एक सम्बन्ध में तब्दील करनें के लिए तुम्हारा जोड़ गुणा भाग में माहिर होना जरूरी है क्योंकि मुझे लिखने के सिवाय कुछ भी नही आता है कुछ भी तो नही...!

'कुछ आपबीती-कुछ जगबीती'

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