Thursday, September 18, 2014

भोर के प्रवचन

प्रेम के सांसारिक आख्यान तुमने लाख पढें हो मगर प्रेम का एक अप्रकट रुप भी होता है। प्रेम का यह संक्षिप्त संस्करण हम सब के अन्दर सम्भावना के रुप मे जिन्दा रहता है यह आग्रह नही चाहता और न ही यह प्रकटीकरण या स्पष्टीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा बन पाता है यह अव्यक्त पडा रहता है मन के किसी सुषुप्त खोने में। प्रेम का यह रुप किसी आंतरिक रिक्तता का परिणाम नही होता है बल्कि यह तो बाह्य दुनिया से बेखबर अंदर ही बनता बिगडता रहता है। प्रेम के मनोविज्ञान पर सबकी अपनी-अपनी टीकाएं है इसलिए प्रेम का मनोविज्ञान प्रेम के दर्शन से सदैव भिन्न होता है। प्रेम किसी भी सम्वेदनशील व्यक्ति के आसान लक्ष्य है वह इसके सहारे लिख सकता कहानी/कविता/गज़ल या दु:ख का महाकाव्य। प्रेम को पढता हुआ अक्सर मै द्वंद का शिकार हो जाता हूं कुछ लोगो को कहते सुना था प्रेम रास्ता दिखाता है यह आपके मन की कुमुदिनी को खिला देता है मगर प्रेम को लेकर इतनी बिखरी हुई बातें सुनता आया हूं कि मुझे प्रेम और मित्रता के मध्य की महीन रेखा को देखने में भी कभी कभी दृष्टि भ्रम का शिकार हो जाता हूं।
दरअसल, प्रेम एक भरोसा है एक आश्वस्ति है कि आप छ्ले या ठगे नही जाएंगे कुछ लोगो की चालाकियों ने जरुर प्रेम को सन्देहास्पद बना दिया है मगर फिर प्रेम हमेशा हमारे चेहरे पर एक इंच मुस्कान लाने की कुव्वत रखता है प्रेम को चरणबद्ध देखने की कोशिस करता हूं तो पाता हूं कि प्रेम के सबसे विचित्र व्याख्यान उनके होते है जिन्होने प्रेम को दशमांश मे भी न जिया हो इससे यह पता चलता है कि प्रेम मे होने वाले इंसान को फुरसत कब मयस्सर होती है कि वो लिख सके या कह सके प्रेम में डूबा व्यक्ति जीता है केवल एक दुनिया जबकि प्रेम को लिखने वाले जीते है कई समानांतर जीवन यह उनके निजी चयन का मसला होता है कि वो कब प्रेम को कहने लगे और कब बन जाए बुद्धि के चौकस पहरेदार इसलिए आज भी प्रेम को बावरा कहा जाता है बावरा इसलिए कि यह आपको आपसे मुक्त करता है इसलिए प्रेम मुक्ति का मार्ग भी है जो आसक्ति से लेकर मुक्ति तक की यात्रा तय करता है प्रेम मे अंतिम मंजिल जैसा कोई स्थान नही है यह सतत चलने और जीने का नाम है अनुभव और अनुभूति दोनो यही कहते है।

‘भोर के प्रवचन’

डॉ.अजीत

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