Monday, September 15, 2014

कलकल

परसों सुबह तुमसे बात करने का मन था कल दोपहर तुम्हें फोन किया आज सुबह एस एम एस। ये तीन दिन सतयुग,द्वापर और त्रेता युग के अंक थे जिन्हें कलयुग में महसूस किया है मैंने। तुम और तुम्हारी बातें वैसे तो युगबोध से परे की चीज़ है मगर तुम्हारी बातों में एक यात्रा भी शामिल है जो निर्वात में झूलती रहती है जहां गुरुत्वाकर्षण भी विपरीत व्यवहार करता है। मै भी कहां गणित विज्ञान आध्यात्म और दर्शन में तुम्हे तलाशता फिरता हूँ जबकि तुम बैठी हो एक निर्जन नदी के किनारे थोड़ी अनमनी सी अपने सूक्ष्म मनोविज्ञान के साथ।तुमसे मिलने नंगे पाँव आना चाहता हूँ मगर मेरे पैरों में वक्त की घिसी हुई चप्पल है जिसे टूटने तक छोड़ा नही जा सकता।
कल रात तुमसे बात हुई थी और आज सुबह मेरी स्मृति लोप हो गई यह बातों के सम्मोहन का नही वक्त की जरूरत का खेल है मेरे-तेरे बीच में यह वक्त आता ही रहा है आड़ा-तिरछा जैसे घने जंगल में बांस फंस जाते है आपस में।
आज दोपहर मैंने तुमसे मिलने का वक्त तय किया था मगर सोचने भर से यदि मुलाकातें हो जाया करती थी तो हम साथ होते हमेशा के लिए। मै आज फिर दिशाशूल का शिकार हो गया हूँ इसे तुम एक अंधविश्वास भरा बहाना समझ सकती हो तुमसें मिलने की भविष्यवाणी कोई ज्योतिष का दैवज्ञ भी नही कर सकता उसकी एक बड़ी वजह यह है कि तुम ईकाई न होकर दहाई हो और मै एक विषम राशि।
कल शाम तुम्हे एस एम एस भेजने के बाद बहुत देर तक मै अनन्यमयस्क बैठा रहा आज सुबह मेरी तन्द्रा टूटी फिर सोचने लगा मै भी कहां तुमसे बात करने के लिए समीकरण साध रहा हूँ तुमसे बात करने के लिए फोन की नही मन के कान की जरूरत है मिलने के लिए अवसर की नही अनायास संयोग की जरूरत है फिर सबसे बड़ी बात जहां जरूरत बीच में आ जाती है वहां तुम मुझसे उतनी ही दूर खिसक जाती हो जितनी जरूरत की लोच होती है।
ठीक है आज सुबह से तुमने बात करना मिलना स्थगित करता हूँ अनंत समय के लिए मेरा पता पडौस के बच्चे की जेब में मिलेगा यदि तुम मिलना या बात करना चाहो तो उससे सम्पर्क कर सकती हो वैसे यह भी एक किस्म की शर्त ही है और शर्तो पर रिश्तें कहां पैर चल लाते कभी...खैर ! जो चाहों समझ सकती हो तुम्हारी समझ फिलहाल एक सबसे प्रखर चीज़ है जिसकी मै बेइंतेहा कद्र करता हूँ...!!!

'कल-आज-कल'

© अजीत

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