Thursday, January 28, 2016

फेसबुक

डायरी के पन्ने नही थी ये न्यूज़ फीड
टाइमलाईन पर कोई सहारा न मिला

मुद्दत बाद दोस्त तो जरूर मिलें यहां
दोस्ती का वो पुराना नजारा न मिला

ग्रीन लाइट जलती हो रात दिन पाबन्द
दूसरा यहां हम सा कोई आवारा न मिला

इनबॉक्स के दिन जवानी के जैसे मिले
जो बीत गया वो लहज़ा दोबारा न मिला

किन रिश्तों दोस्ती की बात करते हो मियाँ
फेसबुक पर डूबकर कभी किनारा न मिला

© डॉ. अजित

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