Tuesday, January 5, 2016

मिलना

तुम मुझे तब मिले जब मिलना कोई घटना नही थी मेरे जीवन में।
इसलिए तुम्हारा मिलना किस रूप में मैं स्मृतियों में संरक्षित करूँ यह तय नही कर पाया आजतक।
एक बेहद जीवन्त बातचीत में तुमने एक जम्हाई ली और अपनी कलाई पर बंधी घड़ी को देखा मैंने इस बात को तुम्हारी अरुचि नही समझा बल्कि तुम उस वक्त ये बताना चाह रही थी कि मुझे बातों को उनके सही वक्त पर करने का पता होना चाहिए।
एक दुसरे की कमजोरियों पर अक्सर हमनें खूब बातें की यह खुद को अधिक परिपक्व और पारदर्शी जताने का एक उपक्रम था वैसे खूबियों पर भी क्या बात करनी थी खूबियां समय सापेक्ष होती है अदलती बदलती रहती है आज जो मेरे ऐब है कल वो मेरी खूबी हुआ करती थी।
तुमने एक दिन पूछा चाय में चीनी कितनी लोगे एक चमच्च? मैंने कहा अपनी चाह का अनुमान मुझे लगाना नही आता इसलिए खुद के अनुमान पर भरोसा नही है फिर मैंने देखा तुमनें आधी चमच्च चीनी डाली इसका अर्थ मैंने यह विकसित किया कि तुम भी मेरे बारें में किसी अनुमान को बचती थी।
कुछ बेहद छोटी और मामूली सी बातें है जो विषय के वर्गीकरण के अभाव में भटक रही है मसलन अक्सर यह हमनें एक दूसरे से यह पूछा कैसे है? मेरी समझ में शिष्टाचार की शक्ल में इससे बेवकूफाना सवाल और कोई हो नही सकता है कोई कैसा है यह बात वो ठीक ठीक बता पाएं यह बेहद मुश्किल है एक ही पल के अलग अलग छोर पर मनुष्य बेहद जीवन्त या अनमना हो सकता है।
तुमसे मिलना समय का एक युक्तियुक्त हस्तक्षेप था या फिर एक बेहद अवैज्ञानिक किस्म का मानवीय षड्यंत्र इन दोनों बातों के अलावा मैं तीसरी बात सोचता हूँ यदि तुम न मिली होती तो क्या मैं इस तरह असंगत बातों को एक शृंखला में कह पाता? शायद नही।
तुम्हारा मिलना असंगतता को अर्थ दे गया यह कम बड़ी बात नही है इसे जीने के बहाने के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
वही मैं कर रहा हूँ।

'मॉर्निंग रागा'

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