Thursday, January 21, 2016

याद शहर

उस शहर से इश्क था मुझे।
जिसके रास्ते अलग अलग मगर सब एक साथ थे जिसकी ईमारतें एक बिछड़ा हुआ कुनबा था एकदूसरे से नाराज़ मगर एकदिन मिलनें की आस पर जो खड़ी थी।
जिसकी गलियों में बच्चों का पसीना धूल को ठंडक देता था। उस शहर में हवाएं समझाईश का खेल खेलती थी ठेठ दुपहरी में भी पेड़ हवा के चेहरें पर ठंडे पानी के छीटें मारते थे।
दुनिया भर के लिए वो शहर भले ही हरजाई था मगर वो मेरा महबूब शहर था। उस शहर के पंछी निर्वासन के बावजूद बहुत खुश थे वें अपना वतन कभी याद न करतें थे सुबह सुबह उनको शहर के बालों में कंघी करते देखा जा सकता था।
सबसे बड़ी बात उस शहर में दरवाजे थोड़े से हमेशा खुले रहते थे वहां बंद कुछ भी नही था बाजार शहर में टापू की तरह था जिसे एकांत चाहिए होता वो खरीददारी के लिए भीड़ का हिस्सा बन जाया करता था।
उस शहर के ऊपर आसमाँ कुछ सीढ़ियां नीचे उतर कर आता था सूरज कुछ किरणों को वापिस नही मांगता था और चाँद घटता बढ़ता हुआ किसी को शिकायत का मौका नही देता था।
उस शहर के इश्क में मैं बर्बाद हुआ हूँ जिसे मेरी भले ही कोई खबर न ली हो मगर मेरी आह और वाह को डायरी की शक्ल में अपनी अलमारी में सम्भाल कर रखा था।
कल जब वो डायरी शहर के सिराहने छूट गई तब मुझे पता लगा कि शहर का दिल आज भी मेरे लिए उतनी ही बेचैनी से धड़कता है जितना कभी पहले धड़कता था बंद में कमरें में वक्त के रोशन से कुछ सर्द हवा अंदर आई और डायरी के पन्ने खुद ब खुद पलटनें लगे यह देख शहर ने खुद को समेट लिया और डायरी पर यादों का वजन रख करवट ले सो गया।
शहर से मुझे इस बात की शिकायत है मगर कभी जताऊंगा नही।


'वो शहर'

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