Monday, January 11, 2016

बेसबब सफर

उस दिन तुमनें तेज दौड़ती गाड़ी का शीशा थोड़ा नीचा किया और अपना हाथ बाहर निकाल दिया तुम हवा को छूना चाहती थी।
हवा तुम्हारे हाथ की रेखाओं के बालों में कंघी करने लगी थी तुम्हारी ऊंगलियां मयूर पंख की तरह आह्लाद में खुल गई थी।
हवा शीशे से गुजरती तुम्हारी एक लट को उलझा रही थी सूरज तुम्हारे माथे की नाप ले रहा था तुम्हारे आँखें बेपरवाही में आधी बंद थी आधी खुली थी। तुम्हारी पलकों में क्षितिज के स्वप्न अंगड़ाई ले रहे थे।
वो एक दिव्य चित्र था जब हवा धूप और छाँव मिलकर तुम्हें संवार रही थी और तुम बिखर रही थी। तुम्हारे हाथ के जरिए हवा ने सीधी दस्तक दिल के उस कोने में दी थी जहां एक अलहदा ख़्वाब सो रहा था उसकी नमी हवा से दूर हुई तो तुम्हारी आँखों ने उसको सूरज़ से मिलवाया फिर वो एक आजाद पंछी की तरह तुम्हारी हंसी के जरिए उड़ गया।
तुम्हारे चेहरे पर हंसी और मुस्कान के मध्य का कोई भाव था ये भाव एकदम दुर्लभ किस्म का था इसलिए मैं किसी बात के हस्तक्षेप से इसे बदलना नही चाहता था क्योंकि मेरी आवाज़ से तुम सावधान हो सकती थी इसलिए मैं चुप रहा और तुम्हें हवा के गले में कुछ खत बांधते देखता रहा हूँ तुम्हारे हथेली और उंगलियो के बीच से हवा ठीक ऐसे बह रही थी जैसे कोई पहाड़ी नदी बहती है तुम्हारी रेखाएं आपस में आइस पाईस खेलनें लगी थी ये देखकर अच्छा लगा था।
तुम्हारी पलकों के रोशनदान पर दो अलग अलग ख़्वाब उड़ने की तैयारी में थे वहां जैसे ही नजदीकियों की धूप उतरी तुमनें हड़बड़ा कर आँखें खोले दी उसके बाद तुम सम्भल गई और हाथ अंदर करके शीशा बन्द कर लिया।
मैंने पूछा क्या हुआ ?
तुमनें कहा कुछ नही बस आँख लग गई थी!
मैं हंस पड़ा मेरी हंसी को तुमने इस तरह देखा जैसे मैंने छिपकर तुम्हारी वो सारी चिट्ठियां पढ़ ली हो जो तुमनें कभी लिखी ही नही।
फिर तुमनें तुरन्त विषय बदलते हुए कहा और कितना वक्त लगेगा?
मैंने कहा शायद थोड़ा और। फिर न तुमनें किलोमीटर पूछे और न घड़ी देखी शायद तुम समझ गई थी कि अलग होने का वक्त नजदीक आ गया है।
तुमनें सफर को छोटा कर दिया था और वक्त बीत रहा था बेहद तेजी से जिसको मैंने ठीक उस वक्त तुम्हारे चेहरे पढ़ा जब तुमनें अपना पर्स अपनी गोद में भींच लिया था जोर से।

'बेखबर बेसबब इक सफर'

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