Wednesday, February 25, 2015

बारिश

रात के बारह बजे के बाद से बारिश है।सुबह जगा तो लगा आज की सुबह कुछ जानी पहचानी सी है। जिनकी रुह पर छाले और पलकों पर जाले लगे होते है उनको बारिश महज़ मौसम का बदलना नही लगता।बल्कि इसकी महीन बूंदो के जरिए वो खुद को रफू करना चाहते है। बारिशों के लगाये पैबन्द अगली बारिश तक रुह से चिपके रहेंगे इसकी भले ही कोई गारंटी न हो मगर खुद की बैचेनियों की आग से झुलसते मन को बेशक ये बूंदे थोडा सुकून तो देती ही है।

एक बारिश खुद के अंदर रोज़ होती है मगर उसका गीलापन दिखता नही है क्योंकि दिल की धरती बेरुखी की गर्मी से इतनी तपती है कि आंसू भांप बन उड जाते है। बातचीत में मेरी पलकों पर जो नमी दिखाई देती है वो दरअसल इसी भांप की नमी है।

सुबह से कुछ किताबें तलाश रहा हूं जो पढी जा चुकी है। जब-जब बारिश होती है मुझे पुरानी किताबें याद आने लगती है और उनको दोबारा पलटना शुरु कर देता हूं। उसमें कुछ अंडरलाईन की गई ख्वाहिशें होती है जिन्हें वक्त के दबाव के चलते तब बचा लेता हूं ऐसी बारिशों के लिए। क्योंकि बारिश मे अक्सर यह महसूस कर पाता हूं कि किसी कहानी कविता या उपन्यास का लेखक कितना मेरे जैसा है और किताब में तुम कहां कहां बैठी हो। आज सुबह से कविता की वह किताब नही मिली जिसकी हर कविता में तुम्हें पाया था जैसे अक्षरों पर तुम्हारी मुस्कान सजी हो व्याकरण में तुम्हारा जीवन हो और पूर्ण विराम में तुम्हारी आश्वस्ति सांस लेती हो।

किताब न मिलनें पर थोडी देर अनमना रहा है आंखे बंद किए बूंदों की आहूतियां सुनता रहा धरती की दरारों में उनका समाना खुद से खुद का मिलने जैसा है। बूंदों के संगीत को सुनने के लिए चेहरे पर टंगे कान किसी काम नही आते इसके लिए दिल से दरख्वास्त करता हूं कि वो थोडी देर के लिए उसके साथ हुई ज्यादतियों को भूल जाए और दिल मान भी जाता है। तुम्हारें कंगन के बीच फंसी चार चूडियों की खनखन से पहला सुर उभरता है और मंद मंद धडकनों में छिपे छंद को आरोह अवरोह के जरिए ताल से साधता हूं फिर बूंदो का एक समूह ताल की थाप बन जाता है बीच बीच में तुम्हारी नई जूतियों का कोरस सुनाई देता है और पायल फिलर की तरह बूंदो के इस नाद में शामिल हो जाती है। ये संगीत दरअसल मन के अधूरे रागों का संगीत है इसलिए मेरी अधूरी जिन्दगी में बारिशों के जरिए बार बार मन को गीला करता है।

आंखे बंद किए मै बूंदों की चुगलियां सुनता हूं जो वें आपस में मेरे बारें मे करती है। बादलों की दुनिया में मेरी आवारागर्दी के किस्से अफवाहों की शक्ल में घूमते है। कुछ बदमाश बादल मेरी बर्बाद किस्म की जिन्दगी को देखने के लिए अपना भार भूल धरती के बेहद नजदीक चले आते है उसके बाद बरसना उनकी मजबूरी होती है। बारिश होने की साजिश में मौसम के अलावा मेरी भी इतनी भूमिका है यह बात कभी कोई मौसमविज्ञानी नही बताएगा।

पिछले एक घंटे से ‘दिल तो पागल है’ और ‘सर’ फिल्म के गाने रिपीट करके सुन रहा हूं ये एक अजीब सा पागलपन है जो बारिश होने पर मुझ पर हावी होता चला जाता है। खिडकी ठीक मेरे बिस्तर के पास है बारिशों में अपना वजूद खो बैठी ठंडी हवा मेरी गाल को छूकर कहती है नही सर्द गर्म तो नही है। मै मुस्कुराता हूं और बारिश को देखता हूं कुछ बूंदे मुझे यूं देखकर शरमा भी जाती है फिर खिडकी से बमुश्किल अपना हाथ बाहर करता हूं मेरी हथेलियों पर दरअसल मेरी गुस्ताखियों के किस्से सीमेंट की तरह पुते है बारिश की नन्ही बूंदे अपनी मद्धम चोट से मेरा हाथ धोना चाहती है मै हथेली नीचे कर देता हूं मेरे हाथ से रिसती बूंदे शायद मेरी इस चालाकी पर हंसती है क्योंकि जमीन पर गिरते वक्त उनकी आंखे चमकती देखता हूं।

अब जब बारिश थम गई है मेरे कानों में अभी भी बूंदों की आवाज़ गूंज रही है ये ठीक तुम्हारी मुस्कान और हंसी के बीच के जैसी है जिसके लिए मेरे पास शब्द नही है। अक्सर बारिश को सुनते हुए तुम्हें याद करता हूं मेरे शब्द खो गये है कहीं इसलिए फिलहाल बूंदों के संगीत से नई वर्णमाला सीख रहा हूं एक दिन इसके नोट्स भेजूंगा तुम्हें फिर तुम भी अपने हिस्से की बारिश को सुन सकोगी ठीक मेरी तरह।


‘बारिश का कोरस’

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