Saturday, February 14, 2015

वजीफा

कुछ लापता गुजारिशें तुम्हारी दराज़ में खोजना चाहता हूँ मगर ये वक्त की दफ्तरी मेज तुम्हारे मेरे बीच आ जाती है। कुछ लम्हें तुम्हारे कंगन के जोड़ पर अटके है एक टांका मेरे अबोले मन का उन पर लगा है जिसे देखने के नजरों को बेहद महीन करना पड़ता है। तुम्हारे स्पर्शों को पलकों पर सम्भालें किसी तिजोरी के गुप्त ताले की तरह तुम्हारे कंगन को घुमाता हूँ मगर मेरी याददाश्त मेरा साथ नही देती है और बहुत कुछ कहता कहता भूल जाता हूँ इस उम्मीद पर शायद तुम मेरे बैचेनियों के वजीफे खाली वक्त में देखा करोगी।
मेरी अनगिनत करवटों की परछाई आज भी तुम्हारा पीछा करती तुम्हारी रोशनी में जाकर खुदकुशी करती है। जरूरत समझों तो अपने काजल की गवाही ले सकती हो वो तुम्हारी आँखों में मेरे रतजगों का सच्चा गवाह है ख़्वाबों की रोशनी में उसी के चाक से तुम मेरा वजूद बनाती मिटाती रहती हो। मेरी रूह पर अरसे से छाले पड़े हुए है तुम्हारा अहसास उनकी गहराई को नापता है और उनकी मरहम पट्टी करता है।
दरअसल तुम्हारे बारें में सोचता नही हूँ मगर कुछ ऐसे पवित्र अहसास है जो मेरा हाथ थामें मुझे उन निर्जन गलियों में ले जाते है जहां तुम्हारे कदमों के निशां वक्त ने आधे अधूरे छोड़े है। मेरा जज्बाती मन उसी की मदद से वो नक्शा तैयार करता है जिसके एक कोने में तुम्हारा शहर रहता है।
मिलनें की उम्मीद दिल अब नही पालता है दिल बस अब जीता चला जाता है खुद के सवालों और और खुद के जवाबों में मसलन कल तुम्हें भूलनें ही वाला था कि तुम्हारा मासूम गुस्सा मुझें याद आ गया फिर उसके बाद तुम्हारी यादों की कैद से मेरी रिहाई न हुई। रात भर ख़्वाब में तुमसे गुफ्तगु के बाद अब मेरी आँख खुली है मगर एक गहरी नींद से ज्यादा ताजगी मेरे जेहन ओ' दिल में है। तुम्हारी एवज़ में नींद की ही नही मै हर किस्म की शिकायत करना भूल गया हूँ।
तुम्हें रोज़ शिकायतों की नही सौगात की शक्ल में हासिल करता हूँ मीलों दूर भी की एक अंगड़ाई यहाँ मुझे यह बता देती है दिन में कम से कम एक बार मुझे याद कर तुम मुस्कुरा देती हो।
फिलहाल मेरे लिए इतना ही काफी है।

'यादों के वजीफे'

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