Monday, February 9, 2015

अभिलाषा

फरवरी एक तिहाई बीत चुकी है। कुछ अधूरे टेक्स्ट मन की गलियों से बह रहें हैं।एक लंबी यात्रा के बाद वें समन्दर का खारापन थोड़ा कम करेंगे। हमनें कभी साथ चलना शुरू किया था मगर आज मैंने देखा कि हम दोनों अलग अलग अक्षांश पर है हमारे देशान्तरों में सार्थक स्तर का अंतर आ गया है। यथार्थ की तमाम सच्चाई के बोध के बाद भी मन से तुम्हारे अनुराग का इंद्रधनुष नही मिटता है। अपनी वाग्मिता के तमाम ज्ञात कौशल के बावजूद भी पहली बार तुम्हें यह ठीक ठीक बतानें में असमर्थ हूँ कि तुम मेरे क्या हो! एक बड़ा ही विचित्र सा अहसास है शायद यह कोई नए किस्म का ज़ज्बात जन्म ले रहा है मेरे अंदर। तुमसे मेल मिलाप की आयु देखता हूँ तो असंख्य ज्वार भाटे नजर आते है हम एक दुसरे को पसन्द से लेकर नापसन्दगी की हद तक का अनुभव अपनें कंधे पर ढो कर यहां तक पहूँचे है। अच्छी बात है यह रही है कि हमने कभी एक दुसरे से घृणा नही की शायद इसी वजह से हमारे सिरे एक दुसरे से जुड़े हुए है आज।
ये महीना प्यार मुहब्बत का महीना है इजहार इनकार मनुहार सबके लिया मुफीद है मगर कम से कम तुम्हारे सन्दर्भ में मै किसी दिन महीने का मोहताज़ नही रहा हूँ। बारह मास तुम मन के केंद्र का एक हिस्सा रही हो।
एक ही बात को अलग अलग भाव शब्दों और वाचिक चालाकी से कहने की बजाये यह बात ईमानदारी से कहनें में मुझे कोई दिक्कत नही है कि हाल फिलहाल तुम मेरे खुद से ज्यादा नजदीक हो। कभी कभी तुम्हें एक कुशल शिल्पी की तरह मेरी संवेदनाओं को आकार देता हुआ देखता हूँ मै इस यात्रा में तुम्हारे कितने नजदीक आ गया हूँ ये तुम ठीक ठीक समझती हो परन्तु बहुत सी सांसारिक बातों के सहारे तुम मुझे उस टापू के का पता देती हो जहां मेरे हम उम्र लोगो का मेला लगा हुआ है वो अपनी अपनी सफलताओं और रिक्तताओं के आयोजन में व्यस्त है।
मेरी उनमें और उनकी बातों में कोई दिलचस्पी नही है ये तुम्हें पता है मगर कभी कभी तुम मुझे संपादित करने की जिद पर उतर आती हो उस समय तुम मैत्री की सीढ़ी के एक पायदान ऊपर पहूँच मुझे सम्बोधित करती हो मगर तुम्हें नही पता होता तुम फिलहाल जहां हो वहीं से तुम्हारी आवाज़ मुझ तक आ सकती है। जैसे ही तुम स्थान बदलती हो मेरे कान स्वत: बंद हो जाते है। मै नही चाहता तुम्हारी ऊर्जा मुझे लोक रीति के उपदेश देनें में अपव्यय हो क्योंकि उस मामलें में मै पर्याप्त ज्ञानी हूँ।
एकदिन मेरे अनुराग के व्याख्यान पर तुमनें सतही टिप्पणी करते हुए कहा था कि मेरे अनुराग का विस्तार मनोवैज्ञानिक अर्थों में कतिपय रूप से असामान्य है। जिसके पुर्नवास के लिए मुझे अपने हमउम्र लोगों में मैत्री,प्रेम,अनुराग की संभावना के कोरे निमन्त्रण सदैव अपनी ऊपर की जेब में रखने चाहिए। ज्ञान अनुभव से आता है इससे इंकार नही है मगर अर्जित ज्ञान की भी एक सीमा होती है। प्रत्येक समान परिस्थिति में वो सभी पर समान रूप से लागू होगा यह कहना मुश्किल होगा। मै अपवाद की तरह तुम्हारे जीवन में बचा रहना चाहता हूँ क्योंकि वक्त के साथ बेहद तेज़ गति से खर्च हो रहा हूँ मैं।
बहरहाल,बहुत स्पष्टीकरण और विस्तृत व्याख्यान से सम्बन्ध शुष्क हो जाते है उनकी तरलता जम जाती है मै जल की तरह तरलता से तुम्हारे जीवन में बहना चाहता हूँ रोज़ दुनियावी सूरज की गर्मी मेरा एक अंश सोख लेती है इससे पहले मेरे अन्तस् के पत्थर तुम्हें नजर आने लगे मै चाहता हूँ मेरे अस्तित्व की पहली बूँद तुम हृदय के अंतिम कोने पर जाकर अपनी यात्रा की पूर्णता को प्राप्त करें। यही मेरी अंतिम अभिलाषा है।

'अंतिम अभिलाषा'

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