Sunday, February 8, 2015

ग़ालिब

ये इश्क नही आसां बस इतना समझ लीजै
फेसबुक की दुनिया से व्हाट्स एप्प तक जाना है
कभी अपडेट के तंज सहने है
कभी लास्ट सीन का धोखा खाना है
दिल ए नादाँ तुझे हुआ क्या है आखिर इस मर्ज़ की दवा क्या है
म्यूच्यूअल फ्रेंड्स तक जानते है हाल ए दिल
एक तुम हो जो पूछते तुम्हें हुआ क्या है
हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकलें
वर्चुअल दिखती थी ये दुनिया तुम तो एकदम रियल निकलें
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक कौन जीता है तेरे जुल्फ के सर होने तक
चैट पर कुछ इस अंदाज से  गुफ़्तगु हो तुमसे
ग्रीन लाइट बंद कर दो सबके लिए कल होने तक।
ना था कुछ तो  खुदा था ना होता तो खुदा होता
डुबोया फेसबुक ने मुझको बेवजह
व्हाट्स एप्प पर होता तो
दोस्तों के शक से बचा होता
हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया वरना आज फेसबुक पर वो भी रात दिन लगा होता।

'चचा ग़ालिब से मुआफ़ी सहित'

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