Monday, February 16, 2015

कॉमन कोल्ड

गलें में खराश है और आंखें तरी से बोझल। तबीयत नासाज़ जब होती है तो इतने चुपके से होती है कि जिस्म कब हथियार डाल देता है पता ही नही चलता है। खुद की गर्म सांसे डाकिए की तरह रूह के खत मुझ तक पहूंचा कर जल्दी में आगे बढ़ जाती हैं। उन्हें बांचता हूँ इन खतों की स्याही धीरे धीरे रंग छोड़ती है और लफ्ज़ लफ्ज़ घुल कर बह जातें है शायद मेरी आँखों की नमी भांप बन उड़ इनकी लिखावट को जल्दी से मिटा देना चाहती हैं। थोड़ी देर के लिए आँखें बंद करता हूँ और पलकों को गले मिलता देखता हूँ पलकों के छज्जे पर तुम्हारी यादें पैर लटकाएं बैठी है जैसे ही आँखें बंद होती है वो आँखों के समन्दर में डूब खुदकुशी करना चाहती है तभी ताप की बैचेनियों में मै बड़बड़ा कर आँखें खोल देता हूँ फिर एक कतरा आंसू ढलक कर कान तक जाता है उसकी आहट की महीन ध्वनि कान सुन लेता है और दिमाग को दिल की गुस्ताखियों के किस्से अपने कूट संकेत में भेज कर संतुलन साधने की अपनी वफादारी जताता है इससे पहले दिमाग तुम्हें मतलबी बताए  मैं करवट बदल लेता हूँ।
मेरा बार बार करवट बदलना ये कमरा बड़ी देर से देख रहा है उसकी चारों दीवार आपस में कयासों की चुगली कर रही है बस छत, खिड़की और दरवाज़ा मुझसे कोई सवाल नही करना चाहता कंक्रीट के इस षडयंत्रीय माहौल में ये तीनों मेरे सच्चे पैरोकार है।
धीरे-धीरे खांसता हूँ गला कराहता जिस्म सिकुड़ता है फिलहाल इतना भी बीमार नही हूँ जितना लग रहा हूँ ये जाती हुई सर्दी की एक बेवजह की शरारत है कल उसे लगा कि भरी सर्दी में तुम्हारी यादों और ख्यालों ने मुझे
इतना गर्म रखा कि मुझे एक छींक तक नही आई। इसलिए कल जब मै थोड़ी देर के लिए तुमसे विलग हुआ ईश्वर को याद कर रहा था तब इस सर्दी ने एक छोटा हमला मुझ पर कर दिया रात भर ख़्वाबों में तुमसे गुफ़्तगु के बाद सुबह मुझे इसकी खबर मिली। ईश्वर मुझे इसलिए भी कमजोर लगता है ये मुझे कमजोर देखना चाहता है अक्सर जब जब उसको याद करता हूँ एक नई चुनौति मुझे थमा देता है हालांकि मुझे जब तुमसे ही अब कोई शिकायत नही तो भला ईश्वर से क्या शिकायत होगी।
तुम अक्सर कहती हो तुम्हारे अंदर ईगो बहुत है तुम्हारी नाक बड़ी है मगर दिल छोटा है।दरअसल शायद तुम ठीक ही कहती हो मेरा दिल सच में इतना छोटा है कि तुम्हारे आने के बाद वहां मेरे जाने की भी गुंजाईश नही बचती है मेरी नाक जरूर बड़ी है मगर वो अपने हिस्से का एकांत को ढ़ो कर बड़ी हुई है इसलिए वो कभी किसी से टकरायेगी इसका न डर है और न कोई खतरा। फिलहाल नाक सुबह से रगड़ रहा हूँ इसलिए लाल जरूर हो गई है इसकी लाली ठीक वैसी ही है जैसे अभी तेज धूप में बैठकर तुम्हारे कान लाल हो जाते है।
अगर तबीयत नासाज़ न होती तो आज तुम्हें इतनी शिद्दत से याद न कर पाता इसलिए कभी कभी बीमार होना भी अच्छा लगता है ऐसी बीमारी तब और भी अच्छी लगती यदि तुम पहले हालचाल पूछती और फिर चिढ़ कर कहती जुकाम ही तो हुआ है क्यों ड्रामा कर रहे हो चलों गर्म पानी पियों तब तक अदरख तुलसी की चाय मै बनाकर लाती हूँ। चाय पीकर सो जाना ठीक उठोगे जब आँख खुलेगी।
छोटी मोटी बीमारी में तुम्हारी आश्वस्ति और झिड़की दोनों  बेहद याद आती है क्यों आती है पता नही।

'कॉमन कॉल्ड: अनटोल्ड'

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