Monday, March 2, 2015

अथ मुखपोथी कथा:

...फिर श्री माधव ने देवऋषि नारद जी से कौतुहल- कातर दृष्टि से पूछा
हे ! देवऋषि नारद आप इतने दिन कहां थे देवलोक में हम सूचना शून्य हो गए है यहां सबकुछ इतना व्यवस्थित है कि दिव्यता में भी रस नही आ रहा है। आप सम्भवतः मृत्युलोक की यात्रा से लौटें है कृपा करके वहां के मानवों का वृत्तांत कहो उसे सुनने की मेरी बड़ी अभिलाषा है।
देवऋषि नारद बोलें:
भगवन आपका अनुमान सही है मैं अभी सीधा मृत्युलोक से ही आ रहा हूँ अब वहां आपकी माया से प्रेरित होकर अज्ञानता का अभिनय नही होता है। मनुष्य उत्तरोत्तर चालाक होता जा रहा है वर्तमान में वहां के समस्त प्राणी समयरेखा के खेल में उलझे हुए है और कभी खुद को आनन्दित तो कभी अवसादित बताते हैं।
श्रीमाधव ने उत्सुकता से पूछा देवऋषि ये समयरेखा क्या है? क्या मनुष्य ने पृथ्वी ग्रह का विभाजन इस रेखा के माध्यम से किया है?
नारद जी बोले नही भगवन् यह कोई आकृति वाली रेखा नही है यह आभासी दुनिया की एक समयरेखा है। आंग्ल देश के एक उत्साही युवा जिसका नाम जुकरबर्ग बताते है उसनें एक ऐसा आभासी मंच तैयार किया है जिस पर संगणक अंतरजाल और चलदूरवाणी के माध्यम से मनुष्य अपने जैसे लोग तलाशता फिर रहा है देश काल धर्म भाषा लिंग से इतर मनुष्य ने अपने एकांत को समाप्त करने की एक युक्ति विकसित कर ली है। आर्यवर्त भारत में तो इस मुखपोथी की लोकप्रियता वर्तमान में शिखर पर है प्रभु। विद्यार्थी से लेकर उद्यमी तक शासकीय सेवा से लेकर निजी क्षेत्र तक,गृहणी,रोजगार और बेरोजगार श्रेणी के सभी मनुष्य इस मंच पर सक्रिय है। मृत्युलोक पर मनुष्य की शायद ही कोई ऐसी कोटि बची हो जो इस मुखपोथी और समयरेखा के फेर में न उलझा हो। मनुष्य की तकनीकी दासता की हालत यह है प्रभु कि अब मनुष्य के हाथ में चलदूरवाणी नामक यंत्र हमेशा रहता है और वो मार्ग पर चलता चलता भी उसमें खोया रहता है वो कभी मुस्कुराता है तो कभी अचानक से खामोश हो जाता है। मनुष्य अपनी निजता प्रकाशित करके लोकप्रियता हासिल कर रहा है। आपको समयरेखा पर खाने पीने रोने धोने,यात्रा, जीने मरने,सुख दुःख, लड़ने और पलायन तक सबकी सूचनाओं का आदान प्रदान मनुष्य को करते देख सकते है। वर्तमान में राजनीति का भी यह बड़ा साधन बना हुआ है।
मुखपोथी पर सुबह मनुष्य एक तस्वीर लगाता है फिर उसके अन्य मित्र उसकी प्रशंसा करते है शाम तक वो उसी प्रशंसा से ऊब कर नई तस्वीर लगा देता है फिर प्रशंसा का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। मनुष्य क्षणिक रूप से खुश होता है फिर गहरे अवसाद में चला जाता है।
प्रभु ! मै पिछले एक महीने से इंद्रप्रस्थ में था वहां पुस्तकों का एक बहुत बड़ा मेला लगा हुआ था। अब पुस्तकों की बिक्री भी अंतरजाल के माध्यम से होने लगी है वहां लेखकों/कवियों/साहित्यकारों ने मेले में घूमकर अपने पाठकों के साथ बहुत से चित्र खिंचवाएं। पाठक बहुत प्रसन्न थे और बिना विलम्ब किए मेले से सजीव चित्रों का प्रकाशन मुखपोथी पर कर रहे थे।
अब लोकप्रिय लेखक वही है जो मुखपोथी पर अपनें पाठक तैयार करता है ऐसे लेखकों को हिन्द का एक प्रकाशन बहुत आदर देता है। कुछ बड़े लेखक मुझे जरूर अनमने नजर आए अब उन्हें भी लेखक कोनें में बैठ प्रवचन देना पड़ा वें अपनी दुलर्भ रहस्यता को लेकर चिंतित दिखे।
भगवन् इस मुखपोथी और समयरेखा ने आर्यवर्त में कवित्व को बड़ा मंच दे दिया है जो लम्बे समय से भरे हुए घूम रहे थे वे अब खुलकर काव्य लिख रहे है और तेजी से लोकप्रिय हो रहे है उत्तर आधुनिक काल की इस नई कविता ने स्थापित कवियों को चिंता में डाल दिया है वें मुखपोथी की कविता की दबे स्वरों में आलोचना करते है मगर अब वें खुद की अज्ञात कविताएँ भी इस मुखपोथी पर प्रकाशित करके यह बताते है कि देखों एक मुखपोथी के कवि और प्रकाशित किताबों वालें कवि के कवित्व में गुणात्मक अंतर होता है।
मैंने कुछ बड़े कवियों को उनकी बैठकों में सोमरस और धूम्रदण्डिका के साथ मुखपोथी की कविता और कवियों की अभद्र आलोचना करते भी देखा और सुना है।वो अप्रसन्न है भयभीत है असुरक्षित है यह मैं बताने में असमर्थ हूँ। ये स्थापित कवि केवल एक बात से अवश्य प्रसन्न है कि इनकी सजिल्द कविताओं की पुस्तकों के स्थाई ग्राहक ये मुखपोथी के ही कवि है बाकि सारी किताबें तो युक्तियों से शासकीय पुस्तकालयों में सुशोभित होती है।
हे ! भगवन मुखपोथी की दुनिया विचित्र रहस्यों से भरी पड़ी है सम्भवः है अब मनुष्य के व्यवहार के अध्ययन के लिए एक मुखपोथी अध्ययन शाखा विकसित की जाए और इस पर स्वतन्त्र शोध हो।
देवनारायण विस्मय से शून्य में देखते हुए बोले यह तो चमत्कार जैसा है देवऋषि ! परन्तु हमें यह अंतरदृष्टि से भी दिखाई नही दे रहा है लगता है देवलोक के संचार अभियंता को बुलाना पड़ेगा तब तक आप मृत्युलोक से यंत्रो का प्रबंध करों मैं यहां अंतरजाल खुलवाता हूँ।
मनुष्य की यह लीला देखनी ही पड़ेगी।
जो आज्ञा प्रभु !कहकर देवऋषि नारद अंतर्ध्यान हो गए।

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