सुबह कहीं अटक गई है। सुबह कितने घंटे विलम्ब से चल रही है इसकी उद्घोषणा कोई नही करता है। रात अपने निर्धारित समय पर ही चली थी।याद करने की कोशिश करता हूँ तो मुझे शाम की एक चिट्ठी याद आती है जिसमें सूरज की तबीयत खराब होने का जिक्र हुआ था। अनुमान लगाता हूँ जहां अभी दिन निकला हुआ होगा वहां सूरज की बीमार रोशनी ही पहूंच रही होगी। मैं सुबह के इन्तजार में हूँ इसलिए मन्दिर की घंटियों,शंख और आरती की आवाज में मेरी कोई रूचि नही है। जो लोग मन्दिर के अंदर ये सब कर रहे है उन्हें सुबह का इन्तजार नही है बल्कि वो सुबह को विलम्बित होते देखना चाहते है ताकि उनकी उपयोगिता बची रहें।
काल का बोध एक चैतन्य घटना है परन्तु काल का चक्र एक भरम भी हो सकता है। दिन और रात की खगोलीय वजहों के अतिरिक्त कुछ दूसरी वजहें भी हो सकती है। कभी कभी दिन होता है और उसको रात समझनें को जी चाहता है ठीक ऐसे ही जब दुनिया थककर सो जाती है मैं रात को जागता हूँ और नींद से बात करने लगता हूँ पूछता हूँ क्या मेरी थकावट एकमात्र वजह है उसके आने की या फिर उसे मुझसे प्रेम है वो खुद थकी हुई आती है मेरे अंदर सोने के लिए। कल शाम जब सूरज डूब रहा था मैंने देखा धरती पर कुछ लोग खुश थे वो शायद रात के इन्तजार में रहें होंगे और रात का विलम्बित हो जाना शायद उन्ही की प्रार्थनाओं का परिणाम हो सकता है।
दोपहर अक्सर एक बात कहती है दिन आधा बचा है जबकि आधी रात अक्सर चुप रहती है वो न सोनें के लिए कुछ कहती है और न रोने के लिए। कुछ लोग निवृत्त हो सो जातें है और कुछ रोनें लगते हैं। रात दोनों के लिए आधी आधी बंट जाती है।
सुबह के इन्तजार में दो किस्म के लोग है एक मेरे जैसे जिन्हें सुबह से कुछ सवाल पूछनें है दुसरे जिन्हें सुबह को कुछ जवाब देनें हैं। आज सुबह तीसरें किस्म के लोगो के आग्रह से विलम्बित है ये वो लोग है जो रात की लम्बाई से संतुष्ट नही हैं इसलिए सुबह से एक टुकड़ा उधार मांगना चाहतें है और लगता है आज सुबह ने उनकी प्रार्थना सुन ली है।
मेरी प्रार्थना इतनी सी है कि सूरज की हरारत ठीक हो गई है क्योंकि यदि सूरज दिन में बीमारों वाली अंगड़ाई लेगा तो बादल इसका गलत अंदाजा लगा बरसनें के षड्यंत्र करनें लगेंगे फिलहाल न धरती चाहती और न मैं कि बारिश हो क्योंकि बारिश का मतलब है सुबह दोपहर शाम रात का फर्क का धुंधला जाना। यह फर्क दरअसल उस उम्मीद का प्रतीक है जो कहती है ना समय स्थिर है ना इसके प्रभाव इसलिए इसके हिसाब से अनुमान के छल से बचनें के साधन विकसित किये जाने चाहिए।
फिलहाल सुबह की आमद हो इसी के इन्तजार में हूँ क्योंकि वो एक चिट्ठी लेकर आनें वाली है जिस पर नाम किसी और का मगर पता मेरा लिखा है यदि वो मुझ तक सही सलामत पहूँच गई तो एक दिन उसकों जरूर उद्घोषणा के स्वर में बाचूंगा। आने वाली सुबह से इतना ही वादा है मेरा।
'सुबह का इन्तजार'
काल का बोध एक चैतन्य घटना है परन्तु काल का चक्र एक भरम भी हो सकता है। दिन और रात की खगोलीय वजहों के अतिरिक्त कुछ दूसरी वजहें भी हो सकती है। कभी कभी दिन होता है और उसको रात समझनें को जी चाहता है ठीक ऐसे ही जब दुनिया थककर सो जाती है मैं रात को जागता हूँ और नींद से बात करने लगता हूँ पूछता हूँ क्या मेरी थकावट एकमात्र वजह है उसके आने की या फिर उसे मुझसे प्रेम है वो खुद थकी हुई आती है मेरे अंदर सोने के लिए। कल शाम जब सूरज डूब रहा था मैंने देखा धरती पर कुछ लोग खुश थे वो शायद रात के इन्तजार में रहें होंगे और रात का विलम्बित हो जाना शायद उन्ही की प्रार्थनाओं का परिणाम हो सकता है।
दोपहर अक्सर एक बात कहती है दिन आधा बचा है जबकि आधी रात अक्सर चुप रहती है वो न सोनें के लिए कुछ कहती है और न रोने के लिए। कुछ लोग निवृत्त हो सो जातें है और कुछ रोनें लगते हैं। रात दोनों के लिए आधी आधी बंट जाती है।
सुबह के इन्तजार में दो किस्म के लोग है एक मेरे जैसे जिन्हें सुबह से कुछ सवाल पूछनें है दुसरे जिन्हें सुबह को कुछ जवाब देनें हैं। आज सुबह तीसरें किस्म के लोगो के आग्रह से विलम्बित है ये वो लोग है जो रात की लम्बाई से संतुष्ट नही हैं इसलिए सुबह से एक टुकड़ा उधार मांगना चाहतें है और लगता है आज सुबह ने उनकी प्रार्थना सुन ली है।
मेरी प्रार्थना इतनी सी है कि सूरज की हरारत ठीक हो गई है क्योंकि यदि सूरज दिन में बीमारों वाली अंगड़ाई लेगा तो बादल इसका गलत अंदाजा लगा बरसनें के षड्यंत्र करनें लगेंगे फिलहाल न धरती चाहती और न मैं कि बारिश हो क्योंकि बारिश का मतलब है सुबह दोपहर शाम रात का फर्क का धुंधला जाना। यह फर्क दरअसल उस उम्मीद का प्रतीक है जो कहती है ना समय स्थिर है ना इसके प्रभाव इसलिए इसके हिसाब से अनुमान के छल से बचनें के साधन विकसित किये जाने चाहिए।
फिलहाल सुबह की आमद हो इसी के इन्तजार में हूँ क्योंकि वो एक चिट्ठी लेकर आनें वाली है जिस पर नाम किसी और का मगर पता मेरा लिखा है यदि वो मुझ तक सही सलामत पहूँच गई तो एक दिन उसकों जरूर उद्घोषणा के स्वर में बाचूंगा। आने वाली सुबह से इतना ही वादा है मेरा।
'सुबह का इन्तजार'
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