Sunday, March 15, 2015

दो बात

वर्तमान समय का सबसे बड़ा छल है जो भविष्य की गोद से निकल कब अतीत का हिस्सा बन जाता है पता नही चलता है। हम कौतुहल से भविष्य की तरफ देखतें है तो अतीत को दो हिस्सों में बाँट देते है। अतीत के एक हिस्से पर हम अपनी मूर्खताओं पर हंस सकते है फख्र कर सकतें है वही दुसरे हिस्से में अपराधबोध और भावुक मूर्खताओं के कैलेंडर टंगे होते है जिनके साल कभी नही बदलतें हैं।
वर्तमान के विषय में सबसे खतरनाक चीज़ एक यह भी होती है कि यदि जीवन में भौतिक उपलब्धियों की आमद नही है तो आपका वर्तमान भूत और भविष्य दोनों से ज्यादा क्रूर हो जाता है।
कुछ करने के भरम और कुछ भी न करने के करम के बीच फंसा होता है एक यथास्थितिवादी मन जो कभी बाह्य दुनिया के तमाशे देख ठहाका मार हंसता है तो कभी आत्मदोष का शिकार हो खुद से ही सवाल करता है कि इस व्यवहारिक और बुद्धिमान लोगो की दुनिया में आखिर मै कर क्या रहा हूँ क्या सहमति,समीक्षा और सांत्वना ही उसके जीवन की उपयोगिता के अधिकतम सूत्र है जिसका सर्वाधिक अभाव होते हुए भी उसे वही सबसे ज्यादा बांटनी पड़ती है ताकि वह काल के इस बोध में प्रासंगिक बना रहे।
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सबसे गहरी चोटें छिपाकर रखने के लिए शापित होती हैं। सबसे गहरे मलाल उन्हीं से जुड़ें होतें है जो दिल के बेहद करीब होते है। सबसे ज्यादा आहत वही बातें करती हैं जो कडवेंपन और स्पष्ट होनें में फर्क नही कर पाती। सबसे असुविधाजनक होता है किसी के जीवन में अपनी भूमिकाओं को बदलते हुए देखना। सबसे बड़ा भय किसी को खोने का होता है जिसके वजूद का हम खुद का हिस्सा मान जीने लगते हैं।
और सबसे बड़ा दुर्भाग्य होता है किसी के जीवन में अपरिहार्य न होना।
...इतनी बड़ी बड़ी बातों के बीच एक छोटा आदमी कैसे मुस्कुराने की सोच सकता था खुश रहनें की जरा सी आदत क्या हुई खुद को खुद की ही नजर लग गई।

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