Monday, December 2, 2013

अंतर्मुखी

अंतर्मुखी व्यक्ति भले ही समाज की मुख्य धारा में उतने काम के न नजर आते हो लेकिन उनकी आत्मकेन्द्रिता प्रतीक होती होती है उनके अन्दर छिपी रचनात्मकता की, साथ ही आध्यात्म की सूक्ष्म वृत्तियों को समझने और बरतने की सबसे अधिक सम्भावना अंतर्मुखी व्यक्तियों के अन्दर छिपी होती है उनके चिंतन की व्यापकता का बडा आधार इससे भी तय होता है कि उनकी ऊर्जा संसार की अभिव्यक्तियों या संलिप्तताओं मे व्यय नही होती है यदि अंतर्मुखी व्यक्ति थोडा भी चैतन्य है तो वह अपने इस शीलगुण का प्रयोग अपने अस्तित्व के अनंत विस्तार और आत्म को समझने के लिए बखुबी कर सकता है। ध्यान,लेखन,सृजन के लिए परमात्मा के उपयुक्त चित्त यदि दिया है तो वह अंतर्मुखी जीव के अन्दर ही दिया है ऐसा नही है बर्हिमुखी इंसान किसी काम का नही है उसकी अपनी उपयोगिता है लेकिन प्राय: अंतर्मुखी इंसान खुद को हीनता के बोझ तले दबा पाता है जिसके चलते वह उस सृजनशील चेतना को विकसित होने का अवसर नही दे पाता है और अंतोत्गत्वा हानि विशुद्ध मानवीयता की ही होती है। समाज के दबाव से मुक्त होकर जीने की कला सीखने मे बरसो बीत जाते जाते है और तब तक ऐसे बहुत सी अंतर्मुखी प्रतिभाएं समाज़ की उस अपेक्षाओं की बलि छड चुकी होती है जहाँ मिलनसारिता और हंसमुख होना जिन्दा होने की अनिवार्य शर्त समझी जाती है।

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