Sunday, December 29, 2013

प्रपंच

कल रात बेहद मानसिक खीझ के पलों में यह फैसला किया था कि यह फेसबुक डिलीट (डिएक्टिवेट नही) करना है रात कई दफा प्रयास किया लेकिन जुकरबर्ग साहब के कारिन्दें बार-बार टेक्निकल एरर दिखा रहे थक कर रात 11 बजे सो गया सुबह उठा इसी संकल्प के साथ कि उठते ही डिलीट कर दूंगा लेकिन सुबह भी वही दिक्कत आयी फेसबुक डिएक्टिवेट करने का ऑप्शन दे रहा है डिलीट के नाम पर ना नुकर कर रहा.... फिर सोचा जब अस्तित्व नही चाह रहा है तो बलात अपनी मानसिक कमजोरी को तकनीकी पर थोपना उचित नही है इसलिए न डिएक्टिवेट किया ( और अकाउंट डिलीट तो हो ही नही रहा था )
फेसबुक पर रहना और ठीक ठाक लोकप्रियता के साथ रहना लेकिन अचानक ही यहाँ से उच्चाटन हो जाना मेरे लिए नई बात नही है ऐसा कई बार हुआ है लेकिन बात अकाउंट डिएक्टिवेट पर जाकर थम जाती थी कल मै अकाउंट डिलीट करने का फैसला कर चुका था...यह प्रथम दृष्टया मानसिक अस्थिरता का प्रमाण लगता है लेकिन आध्यात्मिक अर्थो में यह उस शाश्वत भटकन का प्रभाव है जो एक स्थान,मनुष्य या तकनीकि अधिक समय तक आसक्ति या रस नही बने रहने देना चाहती है यह सपनों की उस मृगमरीचिका के जैसी है जिसका पीछा करना बाध्यता लगती है लेकिन वो है भी या नही इस पर भी सवाल हमेशा बना ही रहता है।
जीवन में स्थाई कुछ भी नही है यह शाश्वत बात है लेकिन कई बार यात्रा पर चलते-चलते लगता है शिखर से शून्य और शून्य से शिखर तक निरंतर यात्रा ही अपने अस्तित्व के सवालों का खुद जवाब दे सकती है यह निजि चयन का मामला है जहाँ आप लोक मे रहकर भी लोक से मुक्त रहना चाहते है और जब आपको लगता है कि आप किसी खास स्थान वस्तु या मनुष्य पर अटक गए है तभी इनरकॉल कहती है निकल लो यहाँ सें....लेकिन निकलने के क्रम और प्रयास में वृत्त की भांति गोल-गोल घूम कर वही आ जाते है जहाँ से कभी चले थे..।
बहरहाल, जिन-जिन फेसबुकिया मित्रों को मैने अकाउंट डिलीट करने जा रहा हूँ कि सूचना देकर उनका मानसिक दोहन किया उन सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ अपनी पूरी काहिली और जाहिली के साथ मै यही पर हूँ....लेकिन कब तक यह मुझे भी नही पता है।

No comments:

Post a Comment