Tuesday, December 3, 2013

एक किरदार ऐसा भी-05


सुसी-गांव के बच्चों की बुआ 


गांव के विभिन्न किरदार ब्याँ करते-करते खुद ब खुद लोग सामने आकर खडे हो रहे है मैने कभी पूर्व योजना से नही सोचा था कि कैसे लोगो पर लिखना है और न ही यह तय किया था कि इन-इन लोगो पर लिखना है जैसे ही एक शख्सियत पर लिख कर समाप्त किया उसके तुरंत बाद ही मुझे दूसरा किरदार नजर आने लगा कि अब इसकी बारी है गांव के जीवन में सहअस्तित्व की अवधारणा में जीते ये किरदार हमारे गांव के लिए किसी पूंजी से कम नही है इनका मूल्य भले ही गांव के लोगो ने उस रुप मे नही पहचाना हो लेकिन मेरे दृष्टिकोण से अभी तक प्रकाशित किया जा चुका हर शख्स अपने आप में अनूठा है उसके व्यक्तित्व का अपना एक प्रकृतिजन्य वैशिष्टय है और इसी वजह से वो शख्सियत हमारे दिल औ दिमाग मे लम्बे समय तक बने रहेंगे।

सुसी (मूल नाम सुरेशो)मेरे गांव की लडकी है लडकी इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि वह गांव की बेटी है गांव के निर्धन ब्राहमण परिवार में उसका जन्म हुआ था अब उसकी उम्र अब पचास के पार हो चुकी है। सुसी को पैदाईशी रुप से वाकविकार (स्पीच डिसआर्डर) था संभवत: जन्म के समय मस्तिष्क में कोई क्षति हो गई होगी और इसी बीमारी का असर उसके संज्ञानात्मक विकास ( Cogitative Development) पर भी पडा वह मानसिक रुप से विकलांग नही थी लेकिन इसके अलावा उसके व्यक्तित्व और व्यवहार में असामान्यता जरुर थी वह ठीक से बोल न पाती थी उसका उच्चारण अस्पष्ट था वह बेहद तेज़ बोलती और चंचल भी थी एक जगह वह बैठी नही रह सकती है गांव की गलियों में उसके चक्कर लगते ही रहते थे कभी इस घर तो कभी इस घर गांव के लिहाज़ से वह ‘डारो’ (घूमंतू) थी। सुसी के सभी लक्षण मै उसके व्यस्क रुप के बता रहा हूँ उसकी अपने निजि जीवन की कहानी भी कम दुख और त्रासदी से भरी नही है।
मानसिक रुप से चुनौतिपूर्ण जीवन जीने वाले लोगो के लिए समाज़ में दया तो होती है लेकिन वो दया बेचारगी से उपजा आवेशभर होता है बाकि ऐसे लोगो के समुचित पुनर्वास की व्यवस्था अभी तक तो शहर में भी उपलब्ध नही है गांव में पुनर्वास जैसी कोई चीज़ होती है यह कोई जानता भी नही है।
सुसी का जितना किस्सा मुझे ज्ञात है उसके हिसाब से सुसी के घर वालों ने उसकी मानसिक अक्षमता के बावजूद उसका बाल विवाह कर दिया था उसके पति और ससुराल पक्ष को जैसे ही इस बात का पता चला कि सुसी एक सामान्य बहु नही है तो उन्होने उसके साथ बेहद अमानवीय किस्म का व्यवहार किया उसकी ससुराल पक्ष वालों ने उसका शोषण करना आरम्भ कर दिया उससे रात-दिन घर का काम करवाना और उसके साथ मारपीट करना भी शुरु कर दिया था। सुसी की शादी के कुछ दिन बाद हमारे गांव से उसके परिवार का कोई व्यक्ति जब सुसी से मिलने उसकी ससुराल गया तो सुसी उसके सामने फफक कर रो पडी और अपनी सारी व्यथा संकेतो के माध्यम से कह दी और उसने वहाँ अपना निर्णय भी सुना दिया कि अब उसे एक दिन भी यहाँ नही रहना है बस उसके बाद वह स्थाई रुप से अपने मायके यानि हमारे गांव आ गई। सुसी उसके बाद कभी वापिस अपनी ससुराल नही गई उसके गांव आने के बाद उसके सुसराल पक्ष ने भी शायद कभी उसकी सुध नही है उसके पति के बारे में कभी गांव में नही सुना गया हालांकि जो बाते सुसी के बारे में मुझे पता है वह नितांत ही स्मृति और जनश्रुति आधारित है।
सुसी ने इसके बाद अपने मायके को ही अपना सब कुछ मान लिया है सुसी अपने मनमर्जी से गांव में घूमती रहती थी गांव मे जब भी कोई शादी होती तो गांव की महिलाएं उसको कपडे भी देती थी सुसी के व्यक्तित्व की खास बात यह भी थी कि वह अपनी चाल-ढाल से बच्चों के मन में विशेष कौतुहल पैदा करती है वह जब गली मे चलती तो बच्चों की टोली उसके पीछे-पीछे चल पडते कई बार बच्चे उसको परेशान भी करते थे यानि उसको चिढाते भी थे अमूमन सुसी बच्चों पर गुस्सा नही करती थी लेकिन जब बच्चों की गुस्ताखियाँ बढ जाती तो वह बच्चो को अजीब तरह से डरा भी देती थी वो उसकी एक खास किस्म की भय पैदा करने की मुद्रा और आवाज़ होती थी उसका बच्चों को डराना केवल उनसे खुद को बचाना होता था क्योंकि कई बार बच्चे उसको बहुत परेशान करते थे। आज भी गांव की महिलाएं बच्चों को रोने से चुप कराने के लिए कह देती है कि चुप हो जा वरना सुसी आ जायेगी और जिस बच्चे ने सुसी का भय देख लिया वह तुरंत ही सुसी के नाम से चुप भी हो जाता थ। ऐसा भी नही था कि वह बच्चो मे भय का ही प्रतीक रही है वह स्वभाव से दयालु भी थी जब भी बच्चा बुआ जी कह कर माफी मांग लेता वह उसको प्यार भी करती थी।
सुसी के लिए आज भी गांव के हर घर का दर खुला है उसके लिए कोई भी भेद नही है उसे हर घर में आदर मिलता है महिलाएं उसको चाय भी पिला देती है और खाना भी खिला देती है और वो खुद भी मांग कर चाय पी लेती है सुसी के व्यक्तित्व में एक खासियत यह भी है कि सुसी अपने मन की मर्जी की मालिक है जहाँ उसका मन नही खाने का होता है वहाँ उससे कितना ही आंग्रह कर लो वह कुछ नही खायेगी...। सुबह-शाम उसको गांव के गलियों में घूमते देखा जा सकता था गांव के बच्चे जब उससे डर जाते तो बुआ जी-बुआ जी करने लगते थे और वैसे भी वह गांव के बच्चो की घोषित रुप से बुआ ही रही है।
सुसी से जब उसके पति की चर्चा करने की कोशिस करता था तो वह प्राय: कुछ चुप हो जाती या फिर अपनी ही अर्द्ध विकसित भाषा में अजीब-अजीब बडबडाने लगती है वह अपने पति को ‘बाबू’ कहती थी उसके सारे प्रलाप में केवल बाबू ही समझ मे आता था कई बार उसको चिढाने के लिए भी लोग कह देते कि बाबू आया हुआ है तुझे उसके साथ भेजेंगे बस फिर वो फट पडती उसकी भाषा तो समझ मे नही आती लेकिन उसकी अव्यक्त भाषा मे छिपा रोष जरुर प्रकट हो जाता हालांकि कुछ लोगो की यह भी मान्यता रही है कि सुसी अपने पति को भला-बुरा नही कहती है बल्कि अपने ससुराल पक्ष के दूसरे लोगो से वह ज्यादा खफा है।
सुसी ने सारा जीवन ऐसे ही ही संताप में बिता दिया उसका दुख किसी त्रासद कथा जैसा है जहाँ उसकी अक्षमता से उपजे उसके दुर्भाग्य ने उसको ऐसी जिन्दगी जीने के लिए बाध्य किया। यह तो गांव के जीवन की खुबसूरती कह लीजिए या गांव की सदाश्यता की सुसी ने अपना सारा जीवन गांव मे सहज और निष्कलंक बिता दिया है गांव में वह अपनी विधवा मां और भाई के साथ रहती थी अब उसकी मां का भी देहांत हो गया है सुसी का एक भाई शहर मे रहता है लेकिन भाईयों ने सुसी की कभी उस रुप मे देखभाल नही की सुसी के लिए सारा गांव ही भाई और पिता समान बनकर रहा है।
अब सुसी भी वृद्धावस्था की तरफ बढ रही है अब उसकी सक्रियता भी कम हो गई है उसको पेंशन मिलती है गांव से ही मुझे अपुष्ट जानकारी मिली उसके हिसाब से पता चला है कि उसका भाई उसको अपने साथ ले गया है शायद उसको मिलने वाली एक पेंशन भी एक वजह हो सकती है लेकिन यह खबर बेहद विचलित करने वाली है जो सुसी दिन भर गांव में घूमती थी उसके लिए शहर के दस बाई दस के दबडों मे रहना कितना दुष्कर हो रहा होगा इसकी कल्पना की जा सकती है।
बहरहाल सुसी के डर और प्यार को देखकर बडी हुई पीढी के लिए सुसी को भूल पाना जरुर मुश्किल है क्योंकि सुसी गांव के रिश्तों मे रची-बसी एक ऐसी शख्सियत है जिसको देखकर कभी डर लगता था तो कभी खुशी भी मिलती थी उसकी अट्टाहस भरी हंसी मुझे आज भी याद आती है आने वाली शादी ब्याहों और अन्य मांगलिक आयोजनो में सुसी की कमी जरुर खलने वाली है यह सारा गांव जानता और समझता है।

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