Thursday, December 19, 2013

सदी की सलाह



मदिरासेवनोपरांत सोशल मीडिया,फोन या अन्य संचार तंत्र पर बने रहना किसी भी प्रकार से विवेकपूर्ण और मित्रोहितकारी नही है। उक्त मनोदशा में मन पर पडी संकोच की चादर हट जाती है और मनुष्य भावनातिरेक अवस्था में भावुक किस्म की बातें करने लगता है ये बातें दिन भर दृढता से बंधे  मनुष्य के उस कमजोर पक्ष की तरफ भी ले जा सकती है जो सर्वथा अपवंचना का शिकार रहा होता है या फिर ऐसी अवस्था में वो हर एक बात आहत कर सकती है जिसको अमूमन रोजाना आप नोटिस न करते हुए लगभग नजरअन्दाज़ कर देते है। कुल मिला कर इस पेय के सेवन के बाद आपको खुद के करीब रहना चाहिए न कि लोक में अपने दमित अभिलाषाओं या शिकायतों को अभिव्यक्त या आरोपित करने में लग जाओं इससे आपकी बातों को गंभीरता से सुनने की प्रवृत्ति तो घटती ही है साथ ही सुबह जब आप अपने कहे लिखे ब्रहम वाक्यों के प्रमाण ( यथा एसएमएस, चैट बॉक्स) देखते है तो एक खास किस्म की ग्लानि और अपराधबोध का हैंगओवर जरुर होता है कि ये मैने क्या कह दिया और क्यों कह दिया....बातें  भी कम से कम एक दिन तो पीछा जरुर करती है फिर आप  दिन भर मूंह छिपाते रहे या फिर अपना माफीनामा तामील करायें नही...नही मेरा कहने का ऐसा मतलब नही था  हो सकता है उन्माद की अवस्था में कुछ ज्यादा लिख-बोल दिया हो आदि-आदि। ऐसी मनोदशा में मै किसी भी प्रकार का स्टेट्स/कमेंट/चैट/एसएमएस/कॉल से मुक्त रहकर अपने अस्तित्व को महसूस करने  और उसके उत्सव में खो जाने को सबसे अधिक उपयोगी समझता हूँ इसलिए जब कभी भी ऐसा अवसर फोन/इंटरनेट/टीवी आदि सब बंद करके मद्धम रोशनी में सूफी संगीत या गजल का लुत्फ लें,नाचें,गाएं,रोएं  तो सबसे बेहतर है ये सब भी न हो तो अपने साकी और रहबरों से गुफ्तगू भी की जा सकती है कुछ अपनी कहना कुछ उनकी सुनना इन संचार-सूचना के तंत्रों पर अटके रहने से कई गुना बेहतर अनुभव होगा कम से कम रात गई बात गई जैसा हाल तो रहेना न कि अगले दिन आप खुद के दिव्य रुप के प्रमाण देखकर कभी असहज तो कभी अचरज़ महसूस करते रहें। इति सिद्धम।

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