Monday, August 21, 2017

नाटक

दृश्य एक:
नभ धवल मंजरी सी  बदरियो से आच्छदित है. उसका अन्तस पुलकित है मानों देवयोग से उसकी छोटी छोटी पुत्रियों के पैरों में स्वेत नुपुर बाँध दिए  गए हो .वायु के पुत्रों को उनके साथ खेलता देखकर नभ का चित्त आह्लादित है. पृथ्वी के पास मंगलाचरण के समाचार भेजने के लिए वर्षा की नन्ही बूंदों को पंचामृत से स्नान कराया जा रहा है उन्हें पृथ्वी पर जाकर ठीक उस स्थान पर बरसना है जहां पृथ्वी ने अपनी उत्कट प्यास को प्राण प्रतिष्ठित किया गया है. नभ के गुप्तचर वर्षा की सेनानायिका को पृथ्वी के सबसे उपेक्षित स्थानों के मानचित्र सौंप रहें है और उन्हें आवश्यक दिशा-निर्देश भी दे वो बिलकुल नही चाहते है कि इस बार की वर्षा अपने किसी अनुमान से चूक जाए और पृथ्वी के ताप के जरिए नभ के पास यह समाचार पहुंचे कि नभ और पृथ्वी के मध्य का संसार लगभग यह मान चुका है कि दोनों के सामीप्य की संभावना नगण्य है. पृथ्वी का द्वन्द यह है कि उसके पास कोई अनुमान नही है वह प्रतिक्षा के सुख को आम मंजरी की तरह खिलते हुए देखती जरुर है मगर उसके मन के संदेह ने  उसके आसपास एक मोटी परत दुश्चिंताओ की बना देते है जिसे नभ के प्रेम के द्वार भी भेद पाना संभव नही है.
दृश्य दो:
 धरती जब यहाँ से चली गई थी तो यहाँ केवल धरती की उखड़ी हुई त्वचा शेष बची थी उसमें न कोई गंध थी और न उसका कोई घनत्व ही शेष था. उसे हाथ में लेने पर भार का बोध नही होता था इसलिए उसने इसे धरती का सबसे का निर्वासित कोना कहा. एक बड़े अंतराल तक यह कोना अपने एकांत के शोक पर एकदम चुप रहा मानो उसके आंसूओं ने बाहर आने से मना कर दिया हो. धरती का यह कोना चुपचाप सिसकता था मगर इसकी सूचना किसी तक नही जाती थी. निर्वासन एक  युग के बाद अब यहाँ कुछ बदल रहा है. आवारा खरपतवार पर पहली बार कुछ रंग बिरंगे फूल खिले है उन्हें बारिश का स्नेह नही मिला मगर वो मात्र बादलों के काले रंग को देखकर अपने अंदर की प्यास को छिपा कर खिल आए है.
इस कोने में एक उपवन ठीक वैसा बन गया है जैसे यहाँ अभी इंद्र की सभा का कोई नूतन नाटक अभी मंचित किया जाएगा. पराग और परागकणों में बड़े और छोटे भाई वाली लड़ाईयां चल रही है वे अपना अपना सामान एक दुसरे से छिपा रहें है. धरती के इस निर्वासित कोने में भंवरो को आने की अनुमति नही है यदि कोई भटक कर आ भी गया तो यहाँ की शांत नीरवता उसकी बड़ी पवित्रता के साथ हत्या कर देगी.  धरती का यह निर्वासित कोना इनदिनों रस विमर्श के कारण एक रूपक बन गया है आश्चर्य इस बात का है कि इस बात की धरती को खबर नही है. जिस दिन धरती को इस मोक्षमय यौवन का बोध होगा धरती थोड़ी देर के लिए नि:श्वास होकर सीधी लेट जाएगी तब वो आसमान को देखेगी और कहेगी ‘ दृष्टि से ओझल होना प्रेम में खो जाना नही होता हो’ !
दृश्य तीन:
धरती और आसमान के मध्य एक रंगशाला है जिसे वैकल्पिक तौर पर नाट्यशाला भी कहा जा सकता है. इसके निर्माण में धरती और आसमान की पूंजी लगी है मगर इस पर किसी का कोई दावा नही है यह एक प्रकार से अखिल ब्रह्माण्ड की सम्पत्ति है. रंगशाला में मनुष्यों की पीठ पर प्रकाशित पराजय के चित्र, भित्तिचित्र के रूप पर मौजूद है घर से निकाले गए देवाताओं के लिए यह अस्थायी मनोरंजन के साधन है. इन देवताओं का स्थायी मनोरंजन मनुष्य की पराजय है.
धरती के आग्रह और आसमान के आदेश पर मैंने एक नाट्यशाला के लिए एक नाटक लिखा है. नाटक की दुविधा यह है कि इसमें कोई नायक नही है धरती इस बात पर खुश है मगर आसमान मुझे थोड़ा नाराज़ दिख रहा है. नाटक में प्रेम को त्रासद  कुछ इस तरह से कहा जाना है कि प्रेम पर सबका भरोसा और अधिक गहरा हो जाए और कोई भी खुद को बर्बाद करने में लेशमात्र भी संकोच न करें.
इस नाटक में प्रेम का दिव्य और लौकिक संस्करण दोनों उपस्थित करना है इसलिए मैनें नाटक में नायकत्व को अप्रकाशित रखने की बात सोची मुझे लगा कि दोनों बातों के साथ नायक को प्रस्तुत करना प्रेम का अपमान होगा. अभी इस नाटक के कुल तीन अंक मैंने लिखे है चौथा लिखने के लिए मैंने धरती से कहा है कि वो मेरे लिए  रौशनाई का प्रबंध कर दें  चूंकि ऊपर से आसमान मुझे लिखते हुए देख रहा है इसलिए मुझे नाटक का अंत छिपाना है और इस अंत को छिपाने के लिए जिस रौशनाई की मुझे जरूरत है वो केवल धरती ही मुझे उपलब्ध करा सकती है.
मुझे संदेह है यदि आसमान ने इस नाटक का अंत पढ़ लिया तो नाटक के मंचन के दिन बारिश भेजकर इसकी प्रस्तुति को जरुर बाधित कर देगा जबकि इस नाटक के अंत में आसमान नायक प्रतीत हो रहा है ये अलग बात है कि इस नाटक में कोई भी नायक नही है.


© डॉ. अजित  

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