Sunday, August 27, 2017

#सुनो_मनोरमा -4

कुछ  फूल तुम्हारे लिए लाया था. इन फूलों के शायद कुछ वैज्ञानिक नाम भी तय किए गये हो मगर मैं इन्हें इनके नाम नही जानता हूँ. मैं इन्हें केवल इनकी गन्ध से जानता हूँ तुम शायद इन्हें इनके रंग भेद से भी जान सकोगी. रंगो को लेकर मेरा बोध थोड़ा कमजोर किस्म का है मेरे पास कुछ अलग अलग किस्म की गंध जरुर संरक्षित है जिन्हें मैं पहचान सकता हूँ.

जब मैं लौट रहा था ये फूल मुझे पत्तियों के पर अटके हुए मिले तब मैंने यह जाना कि फूल हमेशा धरती ही नही चाहता है वो कभी कभी हवा का तिरस्कार करता हुआ मध्य में रहना चाहता है इसलिए मुझे ये फूल पसंद आए मैं इनके एकांत को भंग करने का दोषी जरुर हूँ मगर मुझे पूरी उम्मीद है ये तुम्हारे एकांत के सच्चे साथी जरुर बनेंगे.

कल मुझे शाम को ऐसा लगा कि आज शाम कुछ जल्दी खत्म होने वाली है इसलिए मैंने हांफकर भागते हुए सूरज का एक फोटो खींच लिया फोटो हालांकि उतना अच्छा नही आया मगर मेरी इस हरकत से शाम को मुझ  पर थोड़ा प्यार जरुर आया ये बात मुझे सबसे पहले दिखे तारे ने हंसते-हसंते बताई. उसके बाद मैंने उसकी हंसी का अलग अलग भाषाओं में अनुवाद किया और मैंने उसको वादा किया कि मैं एक ऐसी लिपि विकसित करूंगा जिसको सिर्फ वो पढ़ सकेगा. तारे ने मुझसे कहा नही उसे भाषा में कूटनीति नही चाहिए इसलिए उसने कहा कि वो मेरे अनुवाद से खुश है. इसके बाद रात आ गई और हमारी बातें अँधेरे की ओट में छिपकर सोने चली गई.

मेरे पास कुछ छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़े है मुझे उनके आकार ने आकर्षित किया तो मैंने उन्हें अपनी जेब में भर लिया मगर थोड़ी ही देर बाद मुझे उनका बोझ थोड़ा भारी लगने लगा उसके बाद मैंने उनको एक एक करके आसमान में उछाल दिया वो सब अलग अलग जगह पर गिरे इस तरह से पत्थरों को अलग करने का दोष मुझे लगा. मैं जब भी उन पत्थरों को याद करता हूँ तो मुझे अपने मनुष्य होने का विश्वास पुख्ता होता जाता है. मनुष्य ऐसे ही बोझ के कारण अपने आकर्षण को इधर-उधर फेंकने के लिए जाना जाता है. यह सोचकर मैं अपनी ग्लानी कम करने की कोशिश करता हूँ मगर फिर भी मुझे सपनें में वो पत्थर के टुकड़े एक साथ दिखाई देते है वो मुझे अक्सर कहते है  कि वो सब फिर से आपस में मिल गए है वो मेरी औसत बल पर हंसते है मगर मुझे उनकी हंसी देखकर अच्छा लगता है.

मिलने और बिछड़ने के मध्य पर एक जगह ऐसी होती है जहां न मिलना होता है और न बिछड़ना ही उस जगह का मानचित्र मेरे एक जेब में रखा हुआ था मगर मैं अपनी जेब तक जाने का रास्ता भूल गया हूँ इसलिए मेरे हाथ हवा में जीसस की तरह लटक रहे है तुम्हें यह करूणा से भरें नजर आते होंगे मगर सच बात तो यह है कि ये अपना रास्ता तलाश रहे है इसलिए इनकी गति को देखा नही बस महसूस किया जा सकता है.

आओ ! ये फूल तुम्हें दे दूं फिर उसके बाद मैं फूलों की स्मृतियों से मुक्ति पा लूंगा.
©डॉ. अजित

#सुनो_मनोरमा  

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