Thursday, October 8, 2015

औसत

मनुष्य के पैमाने सर्वोत्तम की तरफ आकर्षित होते है निम्न या औसत के प्रति वो उपेक्षाभाव अपना लेता है। यह मूल्यांकन की सदियों पुरानी परम्परा की कन्डीशनिंग है।इससे मुक्ति दुलर्भ है। बिना किसी महानता के विज्ञापन या धारण स्थापन के बताता हूँ मुझे औसत, औसत से नीचे की या फिर हाशिए की चीजें सर्वाधिक आकर्षित करती है। उपेक्षा में जीते जीते औसत दर्जे के लोगो का सौंदर्य बहुत प्रिजर्व किस्म का हो जाता है। ऐसे ही सौंदर्य को देख मैं अभिभूत और चमत्कृत होता हूँ।
मसलन मुझे बहुत गोरा रंग कभी आकर्षित नही करता है जिनका रंग सांवला है या गेहुँआ है मुझे उनके तेज में एक ख़ास किस्म की अलौकिकता नजर आती है यहां तक अफ्रीकन कॉन्टेन्ट की स्त्रियों में भी मैं गहरे सौंदर्य मूल्य पाता हूँ। गोरी देह या गोरा दिखनें की चाह शायद हमारे मन की ग्रंथियों का परिणाम होती है। ऐसा नही कि मुझे गोरे लोग अप्रिय है मगर मुझे स्वाभाविक रूप से सांवला,गेहुँआ या डार्क कॉम्प्लेक्शन ही आकर्षित करता है। पुरुषों के मामलें में कद भारतीय समाज का एक बड़ा मानक है मगर मुझे कद कभी एक मानक नजर नही आया न ही मैं शरीर सौष्ठव से किसी पुरुष का मूल्यांकन करता हूँ मुझे औसत लम्बाई और सामान्य कद काठी के लोग पसन्द है। देह को कसनें के लिए ज़िम में पसीना बहाते हुए युवाओं की अपेक्षा मुझे वो युवा ज्यादा प्रभावित करता है जो साईकिल पर गेहूं रख चक्की पर आटा पिसवाने जा रहा हो या मेडिकल स्टोर से दवा घर के बुजुर्ग के लिए दवा खरीद रहो हो।
समाज के स्थापित पैमानों और मानकों पर परखे जाते हुए स्त्री पुरुष अपनी सहजता खोते हुए एक बाह्य दुनिया को इमिटेट करना शुरू कर देते है।रंग,कद और देह के इतने दबाव होते है कि बाजार इसका खूब फायदा उठाता है।
...इसलिए कहता हूँ अपनी सहजता में जियो आप जैसे भी है परफेक्ट है किसी के लिए खुद बदलनें की जरूरत नही ग्रूमिंग की अवधारणा आपको उनके हिसाब से देखनें की है जिनका आपके सुख दुःख से कोई सरोकार नही है इसलिए यदि आप औसत या औसत से नीचे के किसी पायदान पर समाज ने बैठा दिए है वो उसके अवसाद में मत रहो खुद को सम्पूर्णता में स्वीकार करो और अपने मन की मौज़ में जीने की आदत विकसित करो बाह्य दबाव का कोई बदलाव आपके अंतर्मन को सच्ची खुशी नही दे सकता है।
दुनिया की परवाह न करों इसी जालिम दुनिया में मेरे जैसे आपके कद्रदान भी बसते हैं।

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