Monday, October 12, 2015

नवरात्रि

सतत् ऊर्जा के संचयन, संलयन और रूपांतरण के लिए शक्ति के साथ एक बेहतर संयोग और समन्वय आवश्यक है। पुरुष और प्रकृति के तादात्म्य से पूर्णता जन्म लेती है दोनों एक दूसरे के पूरक है। ऊर्जा के एक स्थाई स्रोत के रूप में शक्ति की उपस्थिति को अनुभूत करनें के लिए खुद के शिव तत्व को परिमार्जित करना पड़ता है तभी इसका सहज साक्षात्कार सम्भव है। चैतन्य यात्रा में शिव-शक्ति,पुरुष-प्रकृति ये सब उस आदि ब्रह्म के प्रतीक है जिनका अंश लेकर हम इस ग्रह पर विचरण कर रहें हैं।
मन के तुमुल अन्धकार के समस्त प्रयास शक्ति से सम्बंधता बाधित करने के रहते है वो हमें दीन असहाय भरम में पड़े देखना चाहता है उसकी चाह में कुछ अंश प्रारब्ध का है तो कुछ हमारे कथित अर्जित ज्ञान का।
शक्ति स्वरूपा नाद को अनुभूत करने के लिए कामना रहित समर्पण चाहिए होता है अस्तित्व को मूल ऊर्जा स्रोत से जोड़ने की अपेक्षित तैयारी भी अनिवार्य होती है। 'स्व' को व्यापक दृष्टि में पूर्ण करने के लिए शिव और शक्ति से सम्मलित ऊर्जा आहरित करनी होती है।
आप्त पुरुष अहंकार को तज शक्ति की सत्ता को स्मरण करते है उसकी उपस्थिति में याचक नही अधिकारपूर्वक ढंग से खुद को समर्पित कर पूर्णता की प्रक्रिया का हिस्सा बनतें हैं।
पौराणिक गल्प से इतर पुरुष प्रकृति के सांख्य योग के बीज सूत्र सदैव से अखिल ब्रह्माण्ड में उपस्थित रहते है। अपनी तत्व दृष्टि और पुनीत अभिलाषा से उनसे केंद्रीय संयोजन और सम्वाद की आवश्यकता होती है।
शिव तत्व को शक्ति के समक्ष समर्पित करके खुद की लघुता का बोध प्रकट होता है और यही लघुता अस्तित्व की ऊंची यात्राओं का निमित्त बनती है कण कण में चेतना और संवदेना को अनुभूत करनें के लिए खुद को देह लिंग और ज्ञान के आवरण से मुक्त कर सच्चे अर्थों में मुक्तकामी और पूर्णतावादी बनना पड़ता है।
रात्रि अन्धकार का प्रतीक लौकिक दृष्टि में मानी गई है परंतु रात्रि वस्तुतः अन्धकार की नही अपने अस्तित्व की अपूर्णता का प्रतीक है दिन के प्रकाश में अन्तस् के उन गहरे वलयों को हम देख नही पाते है जिन पर अहंकार की परत जमी होती है रात्रि का अन्धकार अन्तस् में प्रकाश आलोकित करने का अवसर प्रदान करता है जिसके माध्यम से हम अपने अन्तस् में फैले अन्धकार को देख सकते है और बाहर से अन्धकार से उसकी भिन्नता को अनुभूत कर सकते है।
शक्ति की उपादेयता हमें आलोकित और ऊर्जित करने की है पुरूष और प्रकृति का समन्वय ब्रह्माण्ड के वृहत नियोजन का हिस्सा है जो जीवात्माएं इस नियोजन में खुद की भूमिका को पहचान लेती है वें सच में अस्तित्व की समग्रता को भी जान लेती है। शिव शक्ति के तादात्म्य के अनुकूल अवसर के रूप में संख्याबद्ध दिन या रात का निर्धारण एक पंचागीय सुविधा भर है इस उत्सव में खुद को समर्पित और सहज भाव से शामिल करके खुद को परिष्कृत किया जा सकता है और उस अनन्त की यात्रा की तैयारी के लिए आवश्यक ऊर्जा का संचयन भी किया जा सकता है जिसके बल पर हमें पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण तोड़कर एक दिन उसी शून्य में विलीन हो जाना है जहां से एकदिन सायास हम यहां आए थे।

'नवरात्रि और सवेरा'

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