Friday, October 2, 2015

वजीफे यादों के

मैं तुम्हें कभी याद नही करता। याद करना एक सायास उपक्रम है तुमसे मेरे हर बंधन अनायास किस्म के है ऐसे में तुम जब याद आती हो बस आ ही जाती हो। निसन्देह तुम्हारे साथ मेरी जीवन की कुछ बेहद सुखद स्मृतियाँ जुड़ी हुई है एकाध तकरार को छोड़कर। तुम्हारें बारें में सोचने भर से मेरी पलकों के झपकनें का अंतराल थोड़ा विलम्बित हो जाता है। आँखों के अंदरुनी हिस्सों में मुस्कान करवट लेने लगती है और बोझिल चेहरे पर भी एक इंच मुस्कान तैर जाती है।
तुम्हारे स्पर्श मेरे जीवन की अविस्मरणीय पूंजी है उन्हें मैं रोज़ सम्भाल कर रखता हूँ तुम्हारी धड़कनों के बंद मेरी धड़कनों की गिरह को रोज़ दूर से रफू कर जाते है। तुम्हारी खुशबू के अनुलोम विलोम से मेरे मन का बासीपन दूर हो जाता है।
रात में सोने से ठीक पहले मेरा तकिया मेरी गर्दन पर तुम्हारा नाम लिखता है और मैं थोड़े से तुम्हारे उन्माद में करवट लेता हूँ फिर बरबस ही मैं बेवजह मुस्कुरा उठता हूँ और नींद में तुमसे मिलनें की गुजारिश अपने अवचेतन के बड़े बाबू के यहां आमद कराता हूँ मगर अफ़सोस तुम ख़्वाब में नही मिलती हो।
तुम ख़्वाब में कैसे मिलोगी तुम मेरे मन की ध्वनि की कोई वर्जना नही हो जो तुम्हें अवचेतन में धकेल दिया गया हो तुम तो मेरी साक्षात अनुभूतियों का केंद्र हो इसलिए तुम्हें रोज़ मैं यादों के सहारे इकट्ठा करता जाता हूँ।
तुम्हें याद कर मैं मुस्कुरा सकता हूँ ये क्या कम बड़ी उपलब्धि है एक अलसाई करवट में तुम्हारी याद का वजीफा मुझे मिलता है और मैं रूह की खुराक से आश्वस्त हो जाता हूँ।
छोटे छोटे ख्यालों और अहसासों में तुम्हारी यादों को डुबोता हूँ और फिर उन्हें मन के छज्जे पर टांग देता हूँ उनसे टपकता अहसास मुझे पहाड़ की बारिश जैसा अहसास देता है अपनेपन की उसी ऊंचाई से मैं तुमसें तुम्हारी गहराई से मिलनें आता हूँ।
बहरहाल, कुछ दिनों से तुम्हारी यादों की नौकरी पर हूँ इसलिए लगता नही है कि तुमसे दूर हूँ। मेरे न लगने से तुम नजदीक नही हो जाती हैं यह बात जानता हूँ फिलहाल तुम्हें याद करके बस इस दूरी के भरम को मिटा रहा हूँ और ऐसा लग रहा है जैसे नींद में मुस्कुरा रहा हूँ।
अभी अभी ख्याल आया पता नही इस वक्त तुम क्या कर रही होगी कुछ भी कर रही होंगी मगर ये तय है कम से कम मेरी तरह से किसी को याद नही कर रही होंगी।

'यादों के वजीफें'

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