Sunday, July 6, 2014

मन बुद्धि के फेर

मन अल्लहड मस्त फक्कड फकीर बनने के लिए बहुत से इंसानों को जीवन में कम से कम एक बार अवसर जरुर देता है परन्तु बुद्धि उसको अर्जित ज्ञान के अभिमान में गुणा भाग लाभ-हानि में लगा देती है यह एक ऐसा आभासी बंधन होता है जिसकी बाह्य चेतना को खबर तक नही हो पाती है सबकुछ बुद्धि के नियोजन से बिन्दू बिन्दू नाप तौल कर चल रहा होता है।
मनुष्य के अनुमान सदैव ठीक ठीक होंगे इसकी कोई प्रत्याभूति नही दे सकता है इसलिए बुद्धि आपको कई बार अकेलेपन के उस टीले पर भी छोड़ आती है जहां से आपको फक्कड़ो की टोली,बच्चों की मुस्कान, कमजोर उपेक्षित की पीड़ा नही दिखाई देती है आप वहां निपट अकेले होते है भले ही आप बुद्धि के अभिमान में उस अकेलेपन को भी एक विशिष्टता के रूप में देखना शुरू कर दें। बेतरतीब,बिना नियोजन  छद्म आदर्शवाद और छद्म अभिप्ररेणावाद से मुक्त रहकर भी एक फक्कड़ जिन्दगी जी जा सकती है बिना देवता बने मानवीय भूलों के साथ गिरते- सम्भलते हुए भी एक बढ़िया जिन्दगी जी जा सकती है।
इस दौर में जब भावुक या अतिसम्वेदनशील होना आपकी कमजोरी के रूप में देखा जाता है यहाँ हर वक्त एक जंग जारी रहती है जहां प्रेक्टिकल होने का मतलब है आपको अपने लिए जीना आता है या नही।
सबका अपना अपना चयन होता है इसलिए उपदेशात्मक कुछ नही कहना चाहता लेकिन मुझे बेहद मुश्किल दौर में भी यह बात एक सच्ची खुशी देती है कि आउटडेटिड और अपरिपक्व या फिर धूर्त समझे जाने के खतरे के बीच भी मै आज भी दिल की सुनता हूँ और जीवन के बड़े फैसले दिल से लेता हूँ इसकी कीमत के रूप में मुझे आजीवन पीड़ा कष्ट कुछ भी मिलें सब सहने को सदैव सहर्ष  तैयार हूँ क्योंकि डिग्री पदवी ओहदे ज्ञान बुद्धि की गुलामी करने से कई गुना बेहतर है अपने मन का मीत बनकर कर एक आम मनुष्य की जिन्दगी जीना जो गलती भी करता तो उसको जस्टीफाई करने के लिए बुद्धिवादी प्रयोजन नही करता दुनिया के लिए यह प्रपंची जिन्दगी हो सकती है लेकिन मेरे लिए यह वह जिन्दगी है जिसको मैंने अपने दिल से चुना है दिमाग से नही।

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