Monday, June 30, 2014

तुरपाई

नेकी कर दरिया में डाल
ईश्वर बैठा है लेकर जाल

कर भला हो भला
इस भ्रम से वक्त टला

मन के हारे हार मन के जीते जीत
दुःख सबके अपने से झूठी लगे प्रीत

ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
तटस्थता की पीड़ा क्या समझोगे खैर

हम बंदे खुदा के सबमे तेरा नूर
मानस के भेद देख अचरज करे हुजूर

जियो और जीने दो
जरूरी है इसके लिए बस-पीने दो ।

© डॉ. अजीत

(कुछ खाली वक्त की कतरनों में यूं ही तजरबे की तुरपाई)

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