नेकी कर दरिया में डाल
ईश्वर बैठा है लेकर जाल
कर भला हो भला
इस भ्रम से वक्त टला
मन के हारे हार मन के जीते जीत
दुःख सबके अपने से झूठी लगे प्रीत
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
तटस्थता की पीड़ा क्या समझोगे खैर
हम बंदे खुदा के सबमे तेरा नूर
मानस के भेद देख अचरज करे हुजूर
जियो और जीने दो
जरूरी है इसके लिए बस-पीने दो ।
© डॉ. अजीत
(कुछ खाली वक्त की कतरनों में यूं ही तजरबे की तुरपाई)
ईश्वर बैठा है लेकर जाल
कर भला हो भला
इस भ्रम से वक्त टला
मन के हारे हार मन के जीते जीत
दुःख सबके अपने से झूठी लगे प्रीत
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
तटस्थता की पीड़ा क्या समझोगे खैर
हम बंदे खुदा के सबमे तेरा नूर
मानस के भेद देख अचरज करे हुजूर
जियो और जीने दो
जरूरी है इसके लिए बस-पीने दो ।
© डॉ. अजीत
(कुछ खाली वक्त की कतरनों में यूं ही तजरबे की तुरपाई)
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