Friday, June 20, 2014

शोध पत्र

कभी-कभी ख्याल आता है कि जिन-जिन लोगो को ब्लॉक/अनफ्रेंड किया हुआ है और जिनसे कभी सक्रिय रूप से बातचीत होती थी यदि वो सब आपस में मिल जाएं तो मेरी निन्दा, आलोचना और दोषदर्शन के लिए व्यापक सम्भावना उत्पन्न हो सकती है। फेसबुक पर एक नया ग्रुप बन सकता है :)
 इसमें कोई संदेह नही बहुतो के दिलों में मेरे लिए खला है उनको मै झूठा, धोखेबाज और छद्म व्यक्तित्व लगता हूँ सबका अपना निजी परसेप्शन हो सकता है इसमें क्या सम्पादन किया जाए। मैंने कभी देवता होने का दावा नही किया मै भी एक आम मनुष्य हूँ और मेरी भी तमाम मानवीय कमजोरियां है मेरे अंदर तमाम बुराइयां हो सकती है परन्तु मै साफगोई से जीने में यकीन रखता हूँ जिसे कई बार मेरा अहंकार तो कभी शातिरपना समझा जा सकता है। आइडियल मै कभी नही रहा और न ही कभी आइडियल बनने की मेरी कोशिश रही है परन्तु लोग यदि अपनी अपनी अपेक्षाओं के केंद्र में मुझे रखे तो यह उनकी समस्या है मै सबके अनुकूल व्यवहार नही कर सकता हूँ क्योंकि यह एक सायास उपक्रम होगा इसमें एक तो मेरे व्यवहार की मौलिकता नही बचेगी दूसरा इसमें ऊर्जा का बहुत अपव्यय होगा।
मै एक यात्री हूँ और उसी की तरह का जीवन जीता हूँ दुर्योग से अतिसम्वेदनशील हूँ इसलिए जिसने कभी आत्मीयता से बात की हो उसकी पैतरेबाजी से असहज भी महसूस करता हूँ।
निन्दा, आलोचना, दोषदर्शन,चरित्रचित्रण,कनबतिया खूब कीजिए दोस्तों यह आपका मौलिक अधिकार है परन्तु एक तरफा रहिए यह भी भला कोई बात हुई कि मेरे बिना रहा भी न जाए और मुझे सहा भी न जाएं। मुझसे छूटे हुए लोगो को मेरी अनुपस्थिति में मुझे विषय बनाकर शोध पत्र पढ़ने से कोई लाभ नही होगा। यदि मेरे लिखे हुए में आपको कभी कोई गुणवत्ता दिखाई दी हो तो इसे उसकी कीमत समझ लीजिए जो आपको चुकानी ही पड़ेगी।

बहरहाल, निदा फाजली साहब के ये दो शे'र अपने उन तमाम दोस्तों के नाम जिनके इन्बोक्सीय विमर्श का केंद्र मै बना हुआ हूँ :)

उसके दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी तरह इस शहर में तन्हा होगा

मेरे   बारे   में   कोई   राय   तो होगी उसकी
उसने मुझको भी कभी तोड़ के   देखा  होगा

सुप्रभात !


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