Tuesday, June 3, 2014

रिचार्ज

आज लेपटॉप को रिचार्ज किया जबसे गाँव आया खुद ब खुद डिस्चार्ज हो कर लगभग ऊर्जा के अंतिम छोर पर सुस्त बैठा मेरी बेरुखी की इन्तहा देख रहा था। आधे दशक के करीब से लेनेवो पुत्र मेरा लेपटॉप एक निर्विकार साथी रहा है उसकी छाती को अपने शब्द बाणों से पीटते हुए मैंने साल दर साल कहने के अभिमान में गुजारें है।
आज पहले अपना पासवर्ड भूल गया और विंडो की घेराबंदी के बीच अपनी याददाश्त टटोलता रहा कई गलत विकल्पों के बीच ठीक जीवन की तरह एक रास्ता दिखा और उसी के सहारे लेपटॉप की लगभग ढाई महीने की नीरस दुनिया में दाखिल हुआ।
तकनीकी की स्मृति मस्तिष्क की सक्रियता/तत्परता या जुड़ाव का हिस्सा हो सकती है परन्तु आज खुद के लिखे कई बेनामी दस्तावेज़ तलाशने के लिए सर्च का विकल्प प्रयोग करना पड़ा निसंदेह यह विचित्र अनुभव था लैपटॉप के भिन्न भिन्न हिस्सों में सुरक्षित मेरी निठल्ली खुराफातें आज काफी तलाशने पर मिली यह किसी पुरानी प्रेमिका के पुराने पत्र पढने जैसा अनुभव कहा जा सकता है।
कभी  सिद्ध समाधि की अवस्था में मेरी छाती पर अखंड शिवलिंग की भाँति प्राण प्रतिष्ठिता को जीने वाली मेरी यह ई पेटी आज चार्जिंग की औपचारिकता भर के लिए खुली दोनों के लिए इसे कोई बढिया अनुभव नही कहा जा सकता है क्योंकि अब हम दोनों ही नही जानते कि कब दोबारा उसमे प्राण फूंके जाएंगे शायद किसी दिन दुनियादारी की परवाह से बेपरवाह होकर उसको फिर गुलज़ार करूं मगर ये दिन निसंदेह फिर उसके ऊर्जाविहीन होने पर ही आएगा अपने बुरे दिनों के अच्छे साथी रहे इस लैपटॉप की इस दुर्गति पर मै शर्मिंदा हूँ माफी इसलिए यहाँ मांग रहा हूँ क्योंकि तुम सुन नही सकते और मै कह नही सकता।

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