Saturday, June 28, 2014

रंग

मेरी बातों में न सच्चाई थी और न अच्छाई ही मेरी बातें एक भवंर की तरह थी जिसकी गहराई बाहर से आकर्षित करके सबको अपने समा लेने की फितरत रखती थी मेरे वाग विलास मेरे आंतरिक भवरों के छद्म रूप थे जिनमें बुद्धिवादी छौंक लगा हुआ था। तुम्हारे सारे अनुमान पहले दिन से ही गलत थे मेरी आंतरिक रिक्तता को भरने के लिए जब मै ही उपाय विकसित न कर सका तब भला तुम्हे कैसे लगा कि तुम्हारी समझ तुम्हारे विश्लेषण मुझे दिशा प्रदान करेंगे मेरी यात्रा उलटे पाँव भूत की यात्रा थी इसलिए वर्तमान के सारे पैमाने ध्वस्त हो गए। मेरे विषय में ठीक ठीक राय तो वह भी न बना पाएं जिनका मै परिणाम हूँ ।
ज्ञात-अज्ञात कारणों से मैंने स्वयं को जितना प्रकट रखा उससे कई गुना गुह्य मेरी आरम्भ से यही योजना थी कि मेरी कोई योजना न हो मेरी आत्मालोचना की आदत तुम साफगोई समझ बैठे यह तुम्हारी समझ की सीमा थी दरअसल यह दुनिया ऐसे भटके हुए निर्वासन भोगते हुए लोगो से भरी पड़ी है जिन्हें कभी खुद के पीड़ित होने का गुमान था।
जीवन की आंतरिक गुफाओं में टहलते यह ख्याल आता है कि यात्राओं का एकांत हमे ईश्वर ने खुद को अभिसारी होने के लिए दिया था परन्तु हम वाग विलास के प्रपंचो शब्द विलास के चातुर्य कर्म में ही एक मरीचिका रचते रहें जिसमे ठुकराएं हुए न जाने कितने लोग अपनी प्यास लिए दम तोड़ जाते है।
न जाने कितने श्राप लिए जीवन को पुरुषार्थ के भ्रम के बीच मेरी जिद मुक्त और एकांतसिद्ध होने की रही है परन्तु जब-जब मुझ से निराश लोगो की सूची देखता हूँ तो मुझे समय के षड्यंत्रो और शब्दों के चक्रव्यूह में फंसे हुए भोले मित्रों की याद आती है जिन पर मेरा ऐसा रंग चढ़ा कि चाहकर भी मुझे नफरत नही कर सकें।

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