एक पाती... तुम्हारे अनाम..
"तुम्हारे जीवन में मेरी उपयोगिता अपनी सुविधा से तय करना तुम्हारे अभ्यास का मामला बन गया है. सम्बन्धो में उपयोगितावाद इस दौर की नयी अवधारणा है इसलिए मैं इसके औचित्य पर सवाल खड़ा नही कर रहा हूँ. मैं हर दशा में स्थैतिक रहूंगा तुम्हारा यह अनुमान मुझे जरूर हैरत में डालता है.ज्ञान, वय, अनुभव और समझ इन सब में वरिष्ठ होने के बावजूद अवधारणा निर्माण के मामले में तुम बड़े निर्धन ही रहे यह इस बात का जीवंत प्रमाण है कि तुम्हारे जीवन में सच्चे दोस्तों का नितांत ही अभाव रहा है. तुम अपने आसपास की भीड़ में छवि के निर्माण में इतनी व्यस्त रहे की तुम्हे अपने अकेले होने का बोध तब हो पाया जब तुम खुद किसी के लिए भीड़ का हिस्सा बन चुके थे.
सच्चे दोस्त रेत के टीले पर बैठ कर हवा का रुख भांपते हुए नही तलाशे जाते न ही शंका के जंगल में हाँफते हुए छाँव में बैठ आसमान की तरफ ताकते हुए मिला करते है सच्चे दोस्त नियति, प्रारब्ध और संचित कर्मो की सुखद युक्ति से मिला करते है.सच्चे दोस्तों को पाने के लिए लगभग पूजा के शंख को बजाने के लिए लगने वाली प्राणशक्ति की आवश्यकता होती है. मेरी तल्खियों में तुम्हारे दिन ब दिन अस्त व्यस्त होते वजूद की फ़िक्र भी शामिल है क्योंकि मैंने तुम्हे कभी चैतन्य और संवेदनशील माना और जाना था.
मित्र कभी उपदेशक न लगे इसलिए मैं अक्सर चुप रहता हूँ मगर मैं चुप्पी आपके जटिल जीवन को सरल नही कर सकती है. इसलिए आज कहना ही पड़ रहा है की बाह्य जीवन में संपादन के साथ सम्भावनाये तलाशने के बजाये तुम्हे अपने आंतरिक एकांत के सम्पादन की आवश्यकता है. तुम्हारा आंतरिक निर्वात तुम्हे उस दिशा में ले जाना चाहता है जहां जीवन सहज है तथा साक्षी भाव से जीना चाहता है परन्तु तुम्हरे व्यक्तित्व के बाह्य दबाव तुम्हे उस हर लौकिक पैंतरेबाजी में मशगूल रखना चाहते है जिसे तुम खुद की समझदारी समझ बैठे हो.
स्नेह एक बिना शर्त के सम्मान की नदी है जो सम्भावनाओ के तट पर आशा और विश्वास के कंकड़ पत्थरो के साथ बहती है इसकी गति इसका इंसान के अच्छे होने का प्रमाण है इसके तटबंध मनुष्य की कमजोरियों से ही बने होते है मगर तुम डूबने के डर से या गहराई के गलत अनुमान की वजह से किनारे खड़े शंका और बुद्धि की कंकर मार इसकी गहराई मापने का यत्न कर रहे हो इससे तुम्हे न जल की धारा के प्रवाह का पता चलेगा और न ही गहराई का. किनारे खड़े तुम्हे उतने की चिंताआतुर बने रहोगे जितने कभी इस नदी के वेग को देखकर हुए थे. क्या तो वापिस लौट जाओ अपने कंक्रीट के जंगल में या फिर छलांग लगा दो बेफिक्र होकर यह अभी तुम्हे ठीक आत्महत्या जैसा प्रतीत होगा मगर मरोगे नही यह मेरा विश्वास है.
...और अंत में यही कहूँगा जीवन को अस्तित्व के हवाले करो तुम्हारे अपने अनुभव और ज्ञान के जो मानवीय बाधाएं है उन्हें अपनी यात्रा की बाधा न बनाओ यदि तुम ऐसा कर पाये तो फिर जीवन के उस पक्ष को जी सकोगे जिसका दशमांश भी अभी तुम न देख पाये हो और न जी ही पाए हो. अपनी तमाम नकारात्मकता के बीच मेरे पास कुछ ऊर्जामय शुभकामनायें है वो तुम्हारे पास भेज रहा हूँ इनका उपयोग करने के लिए तुम्हे अपने मन की सुननी पड़ेगी यह नुक्ता इस प्रलाप में बोनस में तुम्हे सौप रहा हूँ शेष तुम्हारी इच्छा.... तुम्हारा अज्ञानी अमित्र....
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