Wednesday, February 5, 2014

एकांत

कुछ लोगो के बारें में हम नाहक ही बेकार के पूर्वाग्रह पाल बैठते है जबकि वो दिल के अच्छे इंसान होते है जबकि इसके उलट कुछ को हम बेहद नजदीक ले आते है और हमारे आंतरिक एंकात में सम्पादन से लेकर आशा,अपेक्षाओं और आशंकाओं की ऐसी पौध तैयार करते है कि हमे वह हरियाली भी खरपतवार नजर आने लगती है। फेसबुक के सन्दर्भ में एक बात मै खास कर महसूस करता हूं कि कुछ लोगो का लिखा देखकर अच्छा लगता है उनकी तारीफ करने का भी मन होता है भले ही वो हमारी सूची मे हो या न हो लेकिन मन की तारीफ को शब्दों के रुप मे आकार देने से पहले ही ऊर्जा स्वाहा हो जाती है और हम एक भी शब्द नही लिख पाते है बस खाली लाईक मारकर खुद का अपराधबोध कम करने की कोशिस करते है जबकि मै महसूस करता हूं कि कुछ लोग बेहद संक्षिप्त मगर प्रभावी लिख रहे है फिर भी उनके पास पाठको का अभाव है शायद उन्हे सेल्फ ब्रांडिंग नही आती या फिर भी वह साधु भाव से अपना विरेचन करना सर्वोपरी मानतें है सहमति/असहमति/स्वीकृति/ मनुष्य की बाह्य प्रेरणाएं होती है कुछ लोग इनके अभिलाषी है तो कुछ इनसे मुक्त। मेरा दिल सदैव से हाशिए पर जीते लोगो के साथ जल्दी खडा हो जाता है शायद मेरी खुद की हीनता की ग्रंथि इससे जुडी हो बडे नामों और भीड का हिस्सा बनने का दिल नही करता है उनका लिखा जरुर पसन्द आता है लेकिन भीड मे खोने का कोई मजा नही है इसलिए वहाँ से निकल लेता हूं। तो आईये ऐसे लोगो की खोज करे जो एकांत में धूनी  रमाएं बैठे है क्यों न थोडी देर उनका चिमटा बजाया जाए और उनकी लेखनी की चिलम में एक लम्बा कश मारा जाए....अलख निरंजन !!!!

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