Sunday, January 26, 2014

गणतंत्र विशेष



गांव में 26 जनवरी और 15 अगस्त को स्कूल की प्रभार फेरी के बाद सबसे बडा आकर्षण  दूरदर्शन पर आने वाली देशभक्ति की फिल्म का होता था। जिसे देखने के लिए पोर्टेबल टीवी और उसकी बेट्री का इंतजाम पहले से ही करके रखते थे और फिल्म देखते-देखते रोम रोम देशभक्ति की चासनी में डूबकर पुलकित हो उठता था।  पढकर लिखकर बडा होने और डिग्रीयां बटोरने के साथ मन की विशुद्ध देशभक्ति पर विचारधाराओं के ऐसे बादल छाए कि अब  देशभक्ति का अर्थ  देशभक्ति की  वो कोमल भावना नही रही अब देश की व्यवस्था से खिन्न होकर  शायद कमियां देखने का तंत्र अधिक विकसित एवं सक्रिय हो गया है।
हमने बचपन में जैसा भारत देखा था शायद यह हमारे सपनों का भारत नही था यहाँ जाति धर्म के भेद थे यहाँ रसूखदार और कमजोर की खाई थी यहाँ भ्रष्टाचार में डूबी राजनीति थी। अमीर और अमीर होता जा रहा था और गरीब और गरीब हम 21 वीं सदी सूचना प्रौद्योगिकी में जहाँ एक तरफ विश्व के ध्वजवाहक बन रहे थें वहीं हिन्दू-मुसलमान मंदिर-मस्जिद के लिए लड रहे थें गोधरा से लेकर मुजफ्फरनगर तक इंसानियत के जनाज़े निकल रहे थे।
बचपन में जो हसीन तस्वीर हमने अपने देश भारत की देखी थी वो अब इतनी बदरंग हो गई थी हम अपनी उपलब्धियों का जश्न मनाने का साहस भी खो बैठे अब अपने देश के नागरिक होने के नाते मुझे फिक्र रहती है कि जिस मिट्टी पर मैने जन्म लिया है वह कभी विकास के नाम पर तो कभी राजनीति के नाम पर ऐसी इबारत लिख रही है जिसे देखकर साल दर साल मेरी फिक्र बढती गई और फख्र घटता गया।
अब मै तिरंगे के सामने गर्दन झुकाए खडा हूं अब मेरे पेट की लडाई, सही और गलत की लडाई देशभक्ति के उस ज़ज्बे से बडी हो गई है जो कभी बचपन में महसूस किया करता था सेना में भर्ती होने के सपने की चाह अब सेना के उस अमानवीय चेहरे को देखकर जिसमे वह (मानवाधिकार का हनन में वह अव्वल हो, सिवेलियन को जंतु समझने वाली हो, रेल के डिब्बे में बूट से ठोकर मारने वाली हो) उस सेना के शहीदों को सलाम जरुर करती है लेकिन अब मुझे डर लगता है खुद की सेना से ऐसा लगता है वह देश के दुश्मनों के साथ मेरे भी खिलाफ है।
कम से कम यह मेरे सपनों का भारत नही था। मै देश के संविधान में पूर्ण आस्था रखता हूँ इसकी सम्प्रभुता को अक्षुण्ण बनाये रखने का हिमायती हूँ  दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र का निवासी होने पर मुझे अभिमान है लेकिन मेरी कुछ पीडाएं भी है जो मेरी समझ ने पैदा की है और यह समझ मेरे बचपन की देशभक्ति को रोज घुन की तरह चाट रही है जो मै नही चाहता है।

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