Wednesday, January 22, 2014

कायदे का सबक

...और अंतोत्गत्वा तुम भी एक कमजोर इंसान निकले दोस्त ! ठीक मेरी तरह..
मेरी तरह तुम्हारी सीमाएं तुम्हारी सम्वेदनाओं पर भारी पड गई है और तुम्हारी निजता के खतरे इतने बडे हो गए कि तुम डूबने के डर से साहिल को छोड दूर दिख रहे टापू की तरफ भाग निकलें वो भी बिना नाव/पतवार के । मै देख पा रहा हूँ तुम्हारी छटपटाहट बढती जा रही है लेकिन मुझे खुशी है तुमने हाथ चलाना नही छोडा है भले ही थके हुए तुम मंजिल तक पहूंचो लेकिन पहूंच जाओगे ऐसा यकीन किया जा सकता है। वक्त मनुष्य और रिश्तें कभी उस रुप मे लौट कर नही आते जिस रुप मे बिछडते है यह बात अपने तजरबे से कह रहा हूँ तुम्हे नही तुम्हारी स्मृतियों के उन प्रतिबिम्बों को जो अभी भी मेरे इर्द-गिर्द मंडरा रही है मैने उन्हे अभी इशारा किया है कि देखो ! तुम्हारी मंजिल वो निर्जन टापू है जहाँ अभिलाषाओं के जंगल में तुम्हारा मालिक् जिन्दगी जीने के लिए जद्दोजहद करता हुआ भोजन बनाने के लिए लकडियां बीन रहा है अकेला...वो अक्स  मुझ तक कम से कम दो बार लौट कर आएं लेकिन तब तक मैने अपने यादों के दरवाजे पर टीस की सांकल हमेशा के लिए चढा दी थी।
तुम्हारा छिटकना अपने आप में एक सबक है और शायद प्रेक्टिकल होने का कायदा भी। रिश्तों के मदरसें में आलिम बनने का हुनर बेहद जोखिम भरा काम है यह अब समझ पा रहा हूँ उस्ताद और शागिर्द के रिश्तें की गर्द दोस्ती की फूंक से नही उड सकती है इतना भरोसा है तभी तो ठहाका मारकर अभी हंसते-हंसते मेरी आंखे भर आयी और चौकनें के इस दौर में मै बिना चौंके ही अपनी ज्यादती पर हंसता रहा बहुत देर तक तब तक जब तक मुझे अफसोस न होने लगा रिश्तों की ज्यादती पर। चलो फर्ज़ कर लेते है हम मिलेंगे और हम जियेंगे जरुर वो एक टुकडा जिन्दगी फिर से जो फिलहाल किश्तों में रिस-रिस कर खत्म हो रही है अभी-अभी तुम्हारी मुश्किलों के लिए तुम्हारे साथ गुजरे हंसीन लम्हों के लोबान को जला कर मैने दुआ फूंक दी है तुम्हारे लिए बिना तुम्हारी जरुरत जाने क्योंकि लाख कोशिस करने पर भी मै फिक्र करने की आदत नही छोड पाता हूँ चाहे वो दोस्त कि दुश्मन।

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