Thursday, January 16, 2014

राग

जीवन कभी ऐसा मोड भी आ सकता है जब आगे जाने के लिए रास्ता न दिखे आप खुद को क्षितिज़ पर खडे पाये और पीछे हटना भी मुनासिब न हो क्योंकि पीछे हटना हार जाने से बदतर हो सकता है वहाँ अपेक्षाओं के शुष्क जंगल में सम्बंधो के आदिवासी अपने तीर कमानो सहित आपसे उस वक्त का बदला लेने तैयार खडे हो जब आपने कहाँ था देख लेना एकदिन सबको जवाब मिल जाएगा वो जवाब कतई नही लेना चाहते थे वो आपके पीछे हटते कदमों पर निशान साध कर व्यंग्य के तीर मारने के लिए लम्बे अरसे से युद्ध अभ्यास करते रहे हो। यह निराशा से उपजा युद्ध ज्ञान भी नही हो आप अपने पुरुषार्थ से निष्काम और सकाम कर्म करते रहे हो लेकिन यथास्थितिवाद की जकडन ने आपको ऐसे जकड लिया जहाँ आप भेद-अभेद से परे विस्मय से भरे हो जहाँ रास्ते मंजिलों से बडे होकर खत्म हो गए हो। जहाँ उत्साह और रोमांच का कोई अभाव न हो लेकिन अनिर्णय की धूप इतनी सघन हो कि आप यह न तय कर पाये कि आपको जल चाहिए कि छांव या दोनो ही एकसाथ। सकार-नकार से परे आगे और पीछे देखते हुए यह ख्याल कभी चेता दे तो कभी गुदगुदा दे कि ये तमाशा क्या है...ऐसी मनस्थिति के व्यापक आध्यात्मिक अर्थ हो सकते है या सांत्वनाभिलाषियों के एक आदर्श स्थिति भी कह सकते है किंकर्तव्यविमूढ होकर यह सब देखना कतिपय कारणों से कायरता सम प्रतीत हो सकती है लेकिन प्रज्ञा,चेतना और सम्वेदना की जुगलबंदी में जीवन के इस राग के आलाप को सुनने के लिए पहाड से कान उधार मांगने पडते है।

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