Saturday, December 9, 2017

ईश्वर और प्यार

दृश्य एक:
चर्च की बेल्स अभी बजते-बजते थमी है। प्रेयर का मॉर्निंग सेशन खत्म हो चुका है। मनुष्य चुप है मगर कामनाओं,प्रार्थनाओं और ईश्वर में गहरा सम्वाद चल रहा है। ईश्वर ने अपने अनेक प्रतिरूप बनाए मगर फिर भी उसके कान पर्याप्त नही पड़ रहे है। मनुष्य मौन है मगर चर्च के अंदर भारी कोलाहल है।
फादर बाइबिल हाथ मे लिए खड़े है मगर उनके हाथ बंधे हुए है उनके आशीर्वाद में कागज की खुशबू है मगर वो जीसस के भरोसे रोज़ आशीर्वाद बांट देते है। जीसस ने अब उन्हें आशीर्वाद देना बंद कर दिया है।
एक खत आज मदर मेरी के नाम मिला है फादर उसे पढ़ रहे है खत की भाषा से यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि खत स्त्री ने लिखा है या पुरुष ने। यह खत मनुष्य के दुःखों के वर्गीकरण की बात करता है और ईश्वर पर सन्देह करता है। ईश्वर इस बात पर संतुष्ट है कि ईश्वर पर सन्देह करने की बात उसे चर्च के माध्यम से पता चली है।
फादर के पास खत का कोई जवाब नही है इसलिए वो इसे जीसस के कदमों में रख देते है जीसस खत पढ़ना चाहते है मगर वो खुद सलीब पर टँगे है इसलिए मनुष्य के रोष की बात शब्दों की यात्रा तय करके वही समाप्त हो गई है।

दृश्य दो:
कैथरीन अपने प्रेमी से पूछती है
क्या तुम प्यार को जानते हो?
वो जवाब देता है मैं प्यार को जानने की कोशिश में हूँ!
वो फिर दुसरा सवाल करती है
क्या तुम ईश्वर को मानते हो?
वो जवाब देता है मैं ईश्वर को मानने की कोशिश में हूँ
दोनों सवाल एक दुसरे से भिन्न है
दोनों में कोशिश एक कर्म है जो घटित हो रहा है
कैथरीन अब कोशिश को समझना चाहती है
मगर इसके लिए कोई सवाल नही करती है
वो अपने प्रेमी का माथा चूमती है और कहती है
कोशिश करो कि जल्द दोनों को जान जाओ
वो पूछता है क्या तुमनें दोनों को जान लिया है?
कैथरीन थोड़े आत्मविश्वास से जवाब देती है
मैंने जानने कभी कोशिश नही की
मैं ईश्वर और प्यार को प्रक्रिया के तौर पर शायद ही कभी जान पाऊँ
हां ! तुम परिणाम के तौर पर
ईश्वर और प्यार को जरूर जान लेना
मैं तुम्हारे अनुभव से दुनिया के अनुभव का मिलान करूंगी
ईश्वर और प्यार दोनों को समझने का मेरा यही तरीका है
दोनों में मेरी दिलचस्पी बस इतनी है।
अब कैथरीन और उसका प्रेमी प्यार और ईश्वर से साक्षात्कार के अपने-अपने तरीके के अनूठेपन पर मुग्ध होकर एक दुसरे के लगे लगते है और विदा लेते है।

©डॉ. अजित

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