Sunday, December 17, 2017

मायालोक

वो एक मायावी स्त्री थी।
मायावी इसलिए नही कि उसकी बातों में कोई इंद्रजाल था मायावी इसलिए कि उसको देखकर अलग सम्मोहन होता था और सुनकर अलग।
मैं जब उसको अपने नाखुनों को तराशते हुए देखता था तब मैं जान पाता था कि कोई तीव्रता कलात्मक रूप से कैसे खूबसूरत हो सकती है आप खुद चाहे कि वो आपके गर्दन का ग्लेशियर तोड़कर पर पीठकर कुछ नदियों के गलियारें बना दें।
उसकी हंसी में नाराजगी और नाराज़गी में हँसने की तमाम वजह मौजूद रहती थी उसकी आँखों के नीचे गहरे डार्क सर्कल बने हुए थे मैंने जब पढ़ी पढ़ाई बातों के हिसाब से उसको कहा कि ये डार्क सर्कल स्ट्रेस से बनते है तो वो मेरी इस बात पर ठहाका मारकर हंस पड़ी और बोली कम से कम तुम इन पढ़े लिखे बौड़म लोगों में मत शामिल हो। आंखों के नीचे डार्क सर्कल स्ट्रेस से नही सपनों के अलावा में मुस्कान सेकनें से बनते है मगर ये बात कभी कोई स्त्री तुम्हें नही बताएगी वो स्ट्रेस वाली स्थापना से खुद का तादात्म्य स्थापित करके तुम्हारी बात की पुष्टि कर देगी।
उसने एकदिन अपनी आंख से थोड़ा काजल लिया और मुझसे कहा क्या तुम इसका स्वाद बता सकते हो मुझे लगा काजल का क्या स्वाद होगा मैनें कहा काजल तो बेस्वाद होता है इस बात पर वो फिर हंस पड़ी और बोली, क्या तुमनें कभी चखा है किसी स्त्री की आंखों का काजल? मैनें कहा नही। फिर उसने चखने के लिए सहमति नही दी मगर वो मेरी आँखों में डर को पढ़ चुकी थी उसने मुस्कुराते हुए कहा- काजल के स्वाद से डरता हुआ पुरुष मुझे सुंदर लगता है क्योंकि यहां वो अपनी सीमा को स्वीकार करता है। कुछ ही दुःसाहसी स्त्री का काजल का स्वाद चख कर उसका स्वाद बता पाते है क्योंकि क्या तो यह मनुष्य को मौन कर देता है या फिर विद्रोही।
उसकी पैर की अंगूठे के नजदीक वाली उंगली अंगूठे से बड़ी है मैंने उसे देखकर एकदिन अंदाजन कहा कि तुम स्वेच्छाचारी हो उसने कहा यदि यह तुम्हारा अनुमान है तो मैं इस पर कुछ नही कहूंगी मगर यदि यह तुम्हारा अनुभव है तो मैं कहूंगी यह सच है।

#मायालोक

©डॉ. अजित

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