Monday, December 11, 2017

‘बारिश के वजीफे’

बारिश का अलगोजा बड़ी मद्धम तान  छेड़ रहा है. इसके सुर बादलों की गोद में बिखरे पड़े हैं. बारिश जब हंसती है तो हवा थोड़ी उससे चिढ़ जाती है और बूंदों को अधिकतम दूरी पर पटक देती है. बूंदे इस बात पर नाराज़ नही होती है बल्कि खुश होती है क्योंकि इस बहाने से उन्हें अपनी सखी सहेलियों को दूर से देखकर जोर से चिल्लाकर आवाज़ लगाने का सुख मिलता है.
इस हल्की फुलकी बारिश में तुम अपनी खोयी हुई चीजें तलाश रही हो ये भी एक अजीब संयोग है कि पुरानी चीजों को तलाशते वक्त तुम एक नया गाना गुनगुना रही हो उस गाने को सुनकर बूंदों को अपने गीत थोड़े अरुचिकर लगने लगते है इसलिए वो थोड़ी देर के लिए थमकर तुम्हें देखने लगी है. मैं मन ही मन कहता हूँ कि बारिश थम गई है मगर असल में बारिश तुम्हें देखने के लिए रुकी हुई है जैसे ही तुमनें गाना बदला बूंदे जोर से हंसी और फिर से तेज बारिश शुरू हो गई है.
मैं तुम्हारी अंगडाई में छिपा इन्द्रधनुष देखता हूँ मगर इधर रौशनी जरा कम है इसलिए उसके आधे रंग मेरी एक आँख देख पाती है और आधे रंग दुसरी. मैं सोचता हूँ कि इन बूंदों की एक फुहार तुम्हारी पलकों के छज्जे पर आकर बैठ गई है और तुम अपनी गति से पलक झपकती जा रही हो, मैं तुम्हें थोड़ा विलंबित करना चाहता हूँ मगर मैं बूंदों के गुप्तचर के रूप में फ़िलहाल तुम्हें मुखातिब नही होना चाहता हूँ. इसलिए चुपचाप उस फुहार को आंसुओं के जल में मिलता देखकर एक विचित्र से संतोष से भर जाता हूँ.
बारिश की बात हो और चाय की न हो ऐसा करना कुफ्र होगा इनदिनों अकेले चाय बनाता हूँ अब मुझे खराब चाय और अच्छी चाय में भेद करने की आदत नही रही.अब मैं चाय पीता हूँ तो उसके गुणधर्म पर कोई चर्चा नही करता मुझे लगता है मेरी ये आदत भी तुम्हारे साथ ही चली गई. मुझे याद है एक बार मैंने चाय पीते हुए कहा था कि चाय मुझे एक बिछड़ी हुई प्रेमिका लगती है. इस पर तुमने हंसते हुए पूछा था कि और शराब? मेरे पास तब इस सवाल का कोई ठीक-ठीक जवाब नही था मगर अब है. शराब एक रंजिश की तरह है जो गाहे-बगाहे बदला लेने आती रहती है. दोस्त और दुश्मन के बीच का कोई रिश्ता अगर होता हो तो शराब फिलहाल वही है मेरे लिए.
बारिश की बूंदे देख मैं चाय और शराब दोनों को भूल गया हूँ मैंने हवा को महसूसने के लिए अपना हाथ खिड़की से बाहर निकाला तो पाया हवा थोड़ी सर्द जरुर है मगर वो इतनी सर्द बिलकुल नही कि तुम्हारी यादों की बुक्कल खोलने का ही मन न करें.
इसलिए फिलहाल मैं देहरी पर बैठकर बारिश को विदा गीत सुना रहा हूँ मगर वो तुम्हारी खोयी हुई चीजों को तलाशने के कभी इस दर तो कभी उस दर भटक रही है मैं उनकी बेचैनी देख और समझ रहा हूँ फिलहाल तुम्हें उनकी कोई खबर इसलिए नही है क्योंकि ठीक इसी वक्त तुम बादलों को देखकर अनुमान लगा रही हो कि ये बारिश कब थमेगी?
जब बारिश थम जाए समझ लेना मैंने फिर से तुम्हें याद करना शुरू कर दिया है.
‘बारिश के वजीफे’

© डॉ. अजित 

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