Tuesday, December 19, 2017

‘आवारगी’

लौटना एक क्रिया है.
और मैं इसे विशेषण में बदलने से बच रहा हूँ. मन का व्याकरण हर बार की तरह व्युत्पत्ति के सिद्धांतो का अतिक्रमण करना चाहता है. जब हम कहीं जाते है तो लौटते वक्त उतने नही लौट पाते जितने हम गए होते है कई बार हम थोड़े से बढ़कर आते है तो कई बार हम थोड़े से घट कर आते है.
समय एक महीन आवरण भर है जिस इस पर अतीत है तो दुसरे पार भविष्य मैं वर्तमान में यात्राएं करता हूँ और अतीत को याद करता हूँ मेरे सामने जो भविष्य खड़ा है वो थोड़ा उलझाऊ किस्म का है इसलिए मैं उसकी तरफ पीठ कर लेता हूँ.
देह की अपनी एक मौलिक गंध है मगर देह की गंध देह से विलग होकर बहती है उसे महसूस करने के लिए हम खुद नही हो सकते है उसे वही महसूस कर पाता है जो उसके लिए पात्र है.यह पात्रता किसी भी योग्यता से अर्जित नही की जा सकती है यह खुद के अंदर स्वत: स्फूर्त घटित होती है. तुम्हारे साथ मेरी देह की गंध मेरा साथ छोड़ देती है इसलिए भी मैं हल्का महसूस करता हूँ. मेरे पास तुम्हारी देह गंध की कुछ स्मृतियाँ बची है. मगर उन स्मृतियों का मिलान कभी संभव नही है इसलिए मैं उन्हें अपनी देह पर वहां छोड़ देता हूँ जहां-जहां मेरा खुद का हाथ बमुश्किल जाता है.
रास्तों और बादलों के अलावा हवा के पास अपनी एक अय्यारी है वो अपनी दिशा हमें देख बदल लेती है और हमारा वहां तक पीछा करती है जहां से हमारी साँसों की गति असामान्य न हो जाती हो.हवा की आदर देने की इस अदा पर धरती फ़िदा है और वो आसमान को कहती है कि प्रेम में निजता का एक गहरा मूल्य यदि तुम्हें समझना है हवा से सीखना चाहिए.
उदासी मुझे अब संक्रमित करती है मैं अचानक से खुश होता हूँ और फिर बेहद उदास हो जाता हूँ.उदास रहते हुए मैं सबसे ज्यादा खुद के बारें में सोचता हूँ इसका अर्थ यह हुआ कि तुम्हारी प्रत्यक्ष या परोक्ष कोई रिश्ता उदासी से नही है.
जब मैं लौट रहा होता हूँ तो मेरे साथ बहुत कुछ लौट रहा होता है जो मुझे रोज अलग-अलग शक्ल में दिखाई देता है मैं उस सब से बात नही करना चाहता हूँ मगर वो मुझे अपने अपने हिस्से की बातें रोज़ करते है. कल मुझसे एक रास्ते ने कहा कि तुमने चौराहे से लेफ्ट क्यों लिया था? जबकि वो रास्ता थोडा ऊबड़-खाबड़ था. मैंने कहा मुझे जीवन में असुविधाएं पसंद है इस बात पर रास्ता कोई ख़ास खुश नही हुआ मगर उसी रास्ते पर खड़े आवारा घास ने मुझसे गले मिलकर कहा तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो.
‘आवारगी’

©डॉ. अजित 

No comments:

Post a Comment