Tuesday, December 5, 2017

देवता का मनुष्य होना

दृश्य एक:
ऋषि पुत्री विहार कर रही है. यौवन के अपने कौतूहल है. वो फूलों को देखती है और उन पर मंडराते भंवरों को अपलक निहारती है. वो नही चाहती है कि उनकी आवृत्ति में कोई व्यवधान उत्पन्न हो. मंद-मंद हवा बह रही है मगर हवा लौटकर वापस आने में इतना विलम्ब कर देती है कि फिर हवा की जरूरत समाप्त हो जाती है.
ऋषि पुत्री सामवेद का एक मन्त्र गीत की शक्ल में गुनगुना रही है यदपि यह यज्ञ का मन्त्र है मगर उसके कोकिला कंठ से इस मन्त्र को एक सुगम गीत में परिवर्तित कर दिया है. वो रास्ते से छोटी-छोटी कंकर उठाती है और बार-बार अपनी मुट्ठी में उन्हें बंद करके उनकी मन ही मन गणना करना शुरू कर देती है. यह एक विचित्र खेल वो खेल रही है जिसमें खुद ही खुद की परीक्षा ली जाती है.
इस अरण्य में एक मीठा पानी का सोता बहता है वो आज वहां नही जाएगी बल्कि वो आज अपनी प्यास को लेकर वन में भटकना चाहती है.ऐसा करके वो अपने हृदय स्पंदन में मधु के अनुराग को देखना चाहती है. उसी गति देख अनुमान लगता है कि वो आज खुश है मगर वास्तव में वो आज न खुश है और न दुखी. वो अनजान रास्तों से गुज़र रही है क्योंकि आज उसे कहीं पहुंचना नही है.

दृश्य दो:
ईश्वर के सम्मुख उपेक्षित देवता एक अधियाचन लिए खड़े है. उनके अंदर इस बात का रोष है कि देवत्व होने के बावजूद उनका जिक्र मृत्यु लोक में मात्र किसी मन्त्र या किसी ग्रन्थ तक सिमटकर रह गया है. बहुधा मनुष्य उनका नाम और उनकी शक्तियों से अपरिचित है. न कोई उनका आह्वाहन करता है और न ही उनका विर्सजन होता है. देवलोक में उनका उपेक्षा से भरा एकांत उनके अंदर उद्गिग्नता और रोष भर रहा है. जब उनकी शक्तियों का कोई उपयोग ही नही है और न ही उनसे कोई भयभीत महसूस करता है तो फिर वें उन शक्तियों का क्या करें? आज वो ईश्वर को अपना देवत्व लौटाने के लिए आए है. उन्हें मनुष्य अपने से अधिक आकर्षक दिखता है जो अपनी इच्छा इसे मनुष्य,देवता और यहाँ तक ईश्वर के तरह पेश आता है.
ईश्वर के पास उनकी शंकाओं का कोई ठीक-ठीक समाधान नही है वो उन्हें शास्त्र के किसी तर्क से संतुष्ट नही कर सकता है यह बात ईश्वर ठीक से जानता है. देवताओं के उपेक्षाबोध को तोड़ने के लिए ईश्वर उन्हें मनुष्य बनाने का खतरा नही लेना चाहता है क्योंकि उसके बाद खुद ईश्वर की सत्ता को चुनौति मिलने की संभवाना बढ़ जाती है.
ईश्वर पूजा, प्रार्थना, वरदान शक्ति से वंचित देवताओं से कहता है कि तुम मनुष्य की तरह व्यवहार कर रहे हो जबकि तुम देवता हो इस पर देवता हसंते हुए कहते है कि आप भी मनुष्य की तरह व्यवहार कर रहे है जबकि आप तो स्वयं ईश्वर है !
ईश्वर अब चुप है मगर देवता उसकी आँख में प्रत्युत्तर की अपेक्षा से झाँक रहें है अंत में ईश्वर ने ध्यान के नाम पर आँख बंद कर ली और देवताओं में हार कर मनुष्य की आँखों में उसी उम्मीद से देखा आरम्भ कर दिया.

© डॉ. अजित  

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