Saturday, February 11, 2017

सजदा

पीर की मज़ार है। लोबान जल रहा है। सुना है पीर बड़े जलाली थे मगर रहमतों के सदके भी दिल खोल कर बरसाते थे। खादिम जो गद्दानशीं है उसने फ़िरोज़ा पत्थर की कई अंगूठियां पहनी हुई है।

पीर कलन्दर सो रहे है उन्हें जगाने के लिए कव्वाल जूनून के साथ कव्वालियां गा रहें है। पीर एक जरिया है खुदा तलक पहुँचने का खुदा आजकल बैचेन है इसलिए उसने कुछ ताकतें पीर को ही अता कर दी है वो नही चाहता कि इंसान कोई इल्तज़ा करें।

दो आशिक अलग अलग इस मज़ार पर आते है दोनों के मसले और मुकाम जरा अलहदा है। दोनों यहां आकर थोड़े जज़्बाती हो जाते है वो सजदे में झुकते है मगर खुद को भूल जाते है उनकी फ़िक्र में एक दुसरे की फ़िक्र शामिल है।

आदतन वो मन्नतों का कारोबार करते है। गलतफहमियों को भूलने की दरकार करते है। कव्वाली की आवाज़ आ रही है जो कह रही है 'तस्कीन ओ' कल्बे हैदर मेरा सलाम ले जा'
दोनों किसी मुफकिर के कौल से मुतमईन है उन्हें लगता है कि उनकी हाजिरी उनकी जुदाई को हसीं कर देगी। इश्क मजाज़ी में दिल की हरारत जब हसरत बन जाती है तब आशिक का एक किरदार दरवेश से मिलता जुलता हो जाता है।

रूहानी मौसिकी है मगर रूह को यहां भी करार कहाँ है दिल जंगली कबूतर की माफिक न जाने किसका सन्देशा लेकर उड़ गया है उसे न मंजिल का पता है न रहबर का।
मज़ार की तन्हाई जरूर रूह को सुकूँ अता करती है ये तन्हाई मुरीद और मुर्शिद के दरम्यां हसीं गुफ्तगु को देखती है फिर दोनों को इश्क की कलंदरी सिखने के लिए सब्र का वजीफा दे जाती है।

अच्छी बात है दोनों आशिक एक साथ मज़ार पर नही जाते गर ऐसा होता तो दोनों साथ जाते जरूर मगर साथ लौट न पातें। अब अकेले जाते है मगर लौटते है अपने अपने माशूक को साथ लेकर उनके पल्ले एक गिरह मजार बाँध देती है जिस पर हकीकत के सुरमें से लिखा होता है मिलना है तो बिछड़ने का हुनर सीख।

© डॉ. अजित

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